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Monday, August 6, 2018

जेएनयू आख्यान

फुटनोट्स : 01
जेएनयू , हिन्दुस्तान के एक बड़े आख्यान का सर्वनाम बन चुका है. पहले सिर्फ सोचा था कि ' पानीपत की चौथी लड़ाई ' जेएनयू से शुरू हो चुकी है , आगे जहाँ तक पहुंचे .आज शाम जेएनयू में कॉमरेड कन्हैया कुमार के 50 मिनट के भाषण को सुन विश्वास हो गया कि लड़ाई हिन्दुस्तान की है। जेएनयू , कन्हैया और पानीपत भी उस दीर्घलंबित लड़ाई के सर्वनाम हैं. ये लड़ाई बहुत लम्बी चलेगी। महाभारत की 18 दिन चली लड़ाई विगत है , भविष्य नहीं. लड़ाई दिन , महीने और शायद वर्षों तक नहीं निपटेगी . तय है कि नहीं लड़े तो हार निश्चित है , लड़े तो जीत भी सकते हैं.

अंधभक्त डर गए है. उनके आराध्य का डर चकनाचूर हो रहा है। वे बिलबिला रहे हैं - आयं , बायं , शांय , ठायं कन्हैया पर।

 ' कन्हैया आला रे आला ' , कन्हैया के जेल से बाहर आते ही जेएनयू में पढ़ा एक प्रोफ़ेसर फेसबुक पर चीत्कार करने लगा. फिर फुसफुसाया ,    " सुना है जेएनयू में डिस्को चल रहा है जीत के जश्न का." 

कन्हैया की तो बात ही कुछ और है। अंधभक्तों को कभी कुछ भी पढ़ते देखा नहीं है। उन्हें भारत का क्या अपने आराध्य तक का इतिहास बोध नहीं है. वे क्या जाने देशभक्ति , सैन्यवाद नहीं है। दिल्ली पुलिस , कन्हैया के खिलाफ एक भी सबूत नहीं जुटा सकी। 

गृह मंत्री ने पाकिस्तानी आतंकी सरगना के फर्जी ट्वीट का हवाला दिया था। फिर उन्होंने कहा कि इंटेलिजेंस रिपोर्ट है। फिर कहा कि उन्हें कुछ नहीं कहना है. अवाम के कठघरे में सरकार और दिल्ली पुलिस है। वो डरे हुए है। क्योंकि उनका डर काफूर हो रहा है। बब्बन खान ने प्याज के छिलके , अदरक के पंजे जैसे व्यंग नाटक लिखे। उनका मंचन भी हुआ है. कोई ' सड़े अंडे के पावँ " लिख डाले। मंचन पूरा इंडिया कर लेगा।

जज लोग अदालती फैसलों में अदब की दुनिया के गीत , संगीत , कवि , कविता , शेर , शायर का हवाला ना देतें हों ये गलतफहमी होगी। दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस प्रतिभा रानी जी ने कॉमरेड कन्हैया कुमार की जमानत याचिका पर एक फिल्मी गीत का विस्तृत ' साइटेशन ' तो दिया। लेकिन वह भयंकर भूल कर बैंठीं हैं कि वो गीत इन्दीवर का है। अदालती ठप्पे झुटला नहीं सकते कि वो गीत दिवंगत गुलशन बावरा का है। इसके पहले भी इन्हीं जज महोदया ने ' निर्भया ' मामले में अपने निर्णय में जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य , कामायनी के हवाले से जब ये कहा , ' नारी तुम केवल श्रधा हो .. ' तो कुछ हज़म नहीं हुआ. जेएनयू के बन्दे , जज महोदया के हर आर्डर को खंगालने में लग गए है. क्या पता उन्होंने अपने आर्डर में कीर्तन -भजन भी नत्थी कर दिए हों। बहरहाल , उन्हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश , जस्टिस मार्कण्डेय काटजू से अदब की दुनिया की कुछ बारीक बातें सीखनी चाहिए. जस्टिस काटजू ने मुंबई के एक अस्पताल में 43 बरस कोमा में पड़ी नर्स , अरुणा शानबाग की ईक्षा मृत्यु की याचिका को नामंजूर करने के बावजूद अपने निर्णय में मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर उद्धृत किया था। वह था , " जीते हैं आरजू में मौत की , मौत आती है मगर नहीं आती। अरुणा तो बाद में गुजर गयीं। बोल नहीं सकती थीं। गर बोलती तो यहीं बोलती , ' सलाम मिर्ज़ा ग़ालिब। सलाम जस्टिस काटजू। सलाम अदब की दुनिया '.
सैल्यूट शेहला। इस यंग लेडी ने बरास्ते जेएनयू कश्नीर को हिन्दुस्तान भर में फ़ैल रहे छात्र आंदोलन से जोड़ दिया है। और इसलिए कश्मीर में बीजेपी की साँझा सरकार बनी बनी . भक्तों का विलाप था कि वह मैनेजमेंट का अच्छा करियर छोड़ जेएनयू पढ़ने क्यों पहुँच गयी। वे जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष शेहला को लाख चाहने पर भी घेर नहीं सके. उनका ये भी विलाप था कि कन्हैया आदि संग शेहला को भी राष्ट्रद्रोह आरोप में गिरफ्तार करना चाहिए था. वह बच कैसे गयी । उपरोक्त बात की व्याख्या कंही अंग्रेजी में पढ़ी थी। हाय रे भक्त- भक्तिन , हाय तेरा विलाप , सैल्यूट शेहला , सैल्यूट जेएनयू। अंधभक्तों से आज़ादी। रेनबो सलाम बोलिए। वक़्त और विचारधारा का भी तकाजा है। हर रंग समेटने का है।

फक्र है जेएनयू की नयी पीढ़ी पर , जिसने पुरानी पीढ़ी के प्रतिरोध की आवाज़ को और आगे बढ़ाया है। नजीब का सवाल जेएनयू से , जेएनयू का सवाल कन्हैया से , कन्हैया का सवाल रोहित वेमुला से , रोहित का सवाल अख़लाक़ से , बीफ का सवाल भारत के संविधान से , संविधान का सवाल नोटबंदी से , हमारे -आपके सारे सवाल जुड़े है। जवाब कोई नहीं हमारे निज़ाम से। कोई शक ? 

कन्हैया , अनिर्बान और उमर खालिद , तीनों पर दिल्ली पुलिस ने सेडिशन के आरोप चस्पां किये थे। लेकिन पुलिस अदालत में चार्ज शीट दाखिल तक नहीं कर सकी। तीनों ने स्टडी एन्ड स्ट्रगल के मन्त्र को आत्मसात कर हाल में अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली। नोट कर लो और लड़ो हर सवाल पर जवाब के लिए. फिलवक्त सबसे ज्यादा नोटबंदी पर रहे तो बेहतर। बको ध्यानं।

Sunday, August 5, 2018

Links of published matter in Mediavigil








Mediavigil


July
25.07.2018 

18.07.2018
http://www.mediavigil.com/column/bjp-will-make-kashmir-an-election-issue-in-2019/

11 .07.2018
http://www.mediavigil.com/column/communist-movement-of-india-and-parliamentary-democracy/

04.07.2018
http://www.mediavigil.com/column/issue-of-on-nation-and-one-election-is-complicated/

JUNE
27.06.2018
http://www.mediavigil.com/column/opportunism-in-politics-in-india/

20.06.2018
http://www.mediavigil.com/column/communists-will-join-pre-poll-mahagathbandhan/

13.06.2018
http://www.mediavigil.com/column/india-is-in-election-mode-2/


06.06.2018
http://www.mediavigil.com/column/india-is-in-election-mode/


01.06.2018
http://www.mediavigil.com/investigation/bypoll-results-are-wake-up-call-for-bjp/

MAY
30.05.2018
http://www.mediavigil.com/column/decline-in-modis-popularity-and-issue-of-next-lok-sabha-election/


23.05.2018
http://www.mediavigil.com/column/by-election-results-will-tell-the-mood-of-the-nation/


16.05.2018
http://www.mediavigil.com/column/karnatak-election-analysis/


09.05.2018
http://www.mediavigil.com/column/karnatak-election-in-chunav-charcha/


02.05.2018
http://www.mediavigil.com/karnataka-election/karnatak-election-and-other-political-news/

APRIL
25.04.2018
http://www.mediavigil.com/news/election-symbol-of-congress-and-rjd-may-be-cancelled/


18.04.2018
http://www.mediavigil.com/column/investigation-against-cec-closed-but-there-is-no-news/


11.04.2018
http://www.mediavigil.com/column/funding-of-political-parties-should-be-transparent/


04.04.2018
http://www.mediavigil.com/karnataka-election/report-on-karnataka-election/

MARCH
28.03.2018
http://www.mediavigil.com/column/rajyasabha-elections-and-the-history/


21.03.2018
http://www.mediavigil.com/column/modi-and-his-lies/


14.03.2018
http://www.mediavigil.com/column/election-for-rajyasabha-and-loksabha-byelection/


07.03.2018
http://www.mediavigil.com/column/victory-in-up-byelections-is-very-important-for-bjp/

FEBRUARY
28.02.2018
http://www.mediavigil.com/column/what-happened-in-north-east-election/


21.02.2018
http://www.mediavigil.com/column/media-coverage-of-north-east-election-is-only-bjp-centric/


14.02.2018
http://www.mediavigil.com/column/fraud-in-election-survey-and-psephology/



08.02.2018
http://www.mediavigil.com/column/how-media-use-archive-to-file-new-stories-and-vajpayees-1998-election/

Links of published matter in TheCitizenHindi

TheCitizenHindi
02.08.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/14562/India

01.08.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/14553/Gayab

07.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14533/Ayyog

July
23.07.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14468/Air-India

22.07.2018
Bihar

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14457/-------

18.07.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14398/Rajya-Sabha-

10.07.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14346/BJP-ki-chunavi

08.07.2018

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14327/chunavi-chande-ka-gorakhdhanda

MAY
14.05.2018
Karnataka Poll

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13805/meaning-of-Karnatakas-election

12.05.2018
Nepal India

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13783/khul-khul-nepal


APRIL
18.04.2018
Constitution

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/4/13570/New


08.04.2018
Black Money

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/4/13475/safed-huye-kaala-dhan-ki-takat-aur-bhi-jayda-hoti-hai-notebandi-se-wahi-hua


MARCH
31.03.2018
NoConfidenceImpeachment

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13418/---------

23.03.2018
Bhagat Singh

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/4/13366/-----------

22.03.2018
Kedarnath Singh

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/13348/Professor---About-poet-Kedarnath-Singh

14.03.2018
LongRedMarch

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13283/-------

04-03-2018
Tripura

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13191/-----------

FEBRUARY
17.02.2018
CPM

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/13059/----------

13.02.2018
Sati

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/4/13009/------


LINK 
http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/2/14468/Air-India

Also published earlier in print monthly ' Samyantar ' ( Delhi ) 








एयर इंडिया बेचने की  नाकामी के मायने

चंद्र प्रकाश झा

एयर इंडिया को  बेचने की कोशिशें फिर  टांय टांय फिस्स हो गई हैं। लगातार
बढ़ते घाटे और कर्ज में डूबी एयर इंडिया में भारत सरकार की हिस्सेदारी का
76 प्रतिशत विनिवेश करने के लिए मोदी राज की कोशिश पहले ही नाकाम साबित
हो गई थी.  अब मोदी सरकार ने मान लिया है कि इसे बेचने का सही समय नहीं
है।  हाल में  मोदी सरकार के वित्त  मंत्री पीयूष गोयल , परिवहन मंत्री
नितिन गडकरी , नागरिक विमानन मंत्री सुरेश प्रभु  के एक मंत्री -समूह और
बड़े अधिकारियों के संग पूर्व वित्त्त मंत्री अरुण जेटली की  बैठक में इसे
' चुनावी साल ' में  न बेचने का निर्णय कर उसे चलाने के लिए धन मुहैया कराने का निश्चय किया गया।  मंत्री
समूह ने एयर इंडिया के ' सफल रूपांतरण ' पर जोर दिया ताकि  यात्रियों को
वैश्विक स्तर की सुविधाएं उपलब्ध हो सके. सरकार एयर इंडिया में  और 3,200
करोड़ रुपये की पूंजी लगा सकती है। 

लगातार घाटे में चल रही इस एयरलाइन में सरकार अप्रैल 2012 में घोषित बेलआउट पैकेज के तहत पहले ही 26,000
करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी डाल चुकी है। एयर इंडिया में नए सिरे से
पूंजी डालना सरकार के लिए जरूरी हो गया है। उसके  कर्जदाता कंसर्टियम के
तीन बैंकों , देना बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और इलाहाबाद बैंक ने इस
एयरलाइन को आगे 'लाइन ऑफ क्रेडिट' देने से इनकार कर दिया है। ' लाइन ऑफ
क्रेडिट' बैंक और कर्जदार के बीच होने वाला एक समझौता होता है जिसके तहत
कर्जदार कभी भी तय सीमा के मुताबिक उधारी ले सकता है।

सरकार ने  पहले ही स्वीकार किया था  कि  एयर इंडिया के स्वामित्व की
हिस्सेदारी बेचने के प्रस्ताव पर बोली लगाने किसी ने  ' एक्सप्रेशन ऑफ़
इंटरेस्ट ' दाखिल नहीं किया। विनिवेश के उक्त विफल प्रयास में एयर इंडिया
, उसकी किफायती दरों की सहायक कम्पनी , एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर
इंडिया स्टैट्स एयरपोर्ट सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड की भी हिस्सेदारी
बेचने की बात थी। विनिवेश के लिए इसी बरस  31 मई को निर्धारित समय की
समाप्ति तक किसी भी खरीददार की कोई बोली नहीं आयी थी। विनिवेश की  भावी
योजना पर इस मंत्री  समूह को निर्णय लेना था।  इसके सम्मुख कई विकल्प पेश
किये गए थे। एयर इंडिया के कर्मचारियों के वेतन भुगतान में देरी तथा
कम्पनी की विनिवेश योजना में अनिश्चितता माहौल में हाल में केंद्रीय नागर
विमानन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने  कहा था  कि मोदी सरकार , एयर इंडिया
को  पर्याप्त  नकदी और वित्तीय संसाधन उपलब्ध  कराएगी।  एयरलाइन की
महाप्रबंधक (औद्योगिक संबंध) मीनाक्षी कश्यप ने कर्मचारियों को लिखे एक
पत्र में  जून माह में बकाया वेतन का भुगतान करने का भरोसा दिलाया था।
एयर इंडिया के पायलटों की संस्था ने प्रबंधन को एक पत्र  में लिखा था कि
उनके बीच वित्तीय अनिश्चितता , निराशा, चिंता और तनाव की स्थिति है जिससे
विमानन कंपनी की सुरक्षा पर असर पड़ता है।

सरकार ने कर्ज में डूबी इस कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के
विकल्प पर भी विचार किया लेकिन यह भी संभव नहीं हो सका।  कंपनी को
सूचीबद्ध करने से  पूंजी की उगाही हो सकती थी लेकिन इसके लिए भारत के
प्रतिभूति एवं शेयर बाजार के नियमन के लिए बनी संस्था , सेबी के मानदंडों
के अनुरूप एयर इंडिया को तीन वर्ष तक लाभ की स्थिति में रहना आवश्यक
है।एयर इंडिया  पर मार्च 2017 तक करीब 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज था।
एयर इंडिया के विनिवेश प्रस्ताव का कंपनी के कर्मचारियों के विभिन्न
यूनियन विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थक स्वदेशी जागरण
मंच  ने एयर इंडिया कंपनी का प्रारम्भिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने
का सुझाव देते हुए कहा था कि  एयर इंडिया को बचाने और इसके सक्षम संचालन
की जरूरत है।  आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के अनुसार एक
विकल्प यह भी था कि सरकार अपनी  शत-प्रतिशत हिस्‍सेदारी बेच दे।   एयर
इंडिया के लिए नियुक्त सलाहकार , ' ईवाई ' ने कहा कि कंपनी में अल्पांश
हिस्सेदारी सरकार के पास रखने जाने का प्रावधान इसकी बिक्री की राह में
सबसे बड़ी बाधा बनी।  बिक्री में अड़चन के अन्य आधार  एक साल तक
कर्मचारियों को कंपनी के साथ बनाए रखने का प्रावधान भी था।

भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइंस , इंडिगो ने शुरु में एयर इंडिया को
खरीदने में रूचि दिखाई थी लेकिन बाद में उसने अपने  हाथ खींच लिए।   इसकी
बड़ी वजह सरकार द्वारा एयर इंडिया के अंतरराष्‍ट्रीय ऑपरेशंस को अलग से न
बेचना था. एयर इंडिया कई सालों से घाटे में चल रही है। इसे चलाए रखने के
लिए कई बेलआउट पैकेज भी दिए गए।  लेकिन इसकी हालत में कोई सुधार नहीं
हुआ.

यह एनडीए सरकार में एयर इंडिया को बेचने की दूसरी कोशिश है जो सफल नहीं
हुई।  पिछ्ली बार की कोशिश अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में
2001 में की गई थी।  उस सरकार ने तो बाकायदा पहली बार एक विनिवेश
मंत्रालय ही खोल दिया था जिसके मंत्री अरुण शौरी बनाये गए थे।  यह भारत
की  ध्वजवाहक राजकीय विमानयात्रा -सेवा कम्पनी है जिसकी स्थापना देश की
आज़ादी से पहले 1932 में  टाटा एअरलाइन्स के रूप मैं की गई थी।   इसके
बेड़ा में  अभी मुख्यतः  एयरबस और बोईंग कम्पनी के 31 विमान है।  बड़े में
और 40 विमानों को लाने के आदेश दिए जा चुके हैं।  उसकी भारत में 12 और
देश के बाहर 39 नगरों की नियमित  उड़ानें  हैं।  कुछ वर्ष पहले भारत की
घरेलु राजकीय विमान सेवा कम्पनी , इंडियन एयरलाइंस का एयर इंडिया में
विलय कर दिया गया था.

Health Scene In India

LINK
http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/14561/India
Also published earlier in print edition of daily ' National Duniya ' ( Delhi )

खुदा खैर करे भारत की सेहत की

चन्द्र प्रकाश झा *


हिन्दुस्तान में एक पुरानी कहावत है , जान है तो जहान है. इसका सीधा मतलब सेहत है। सेहत के मामले में  हिन्दुस्तानी  , आम  तौर  पर फिक्रमंद रहे हैं। सभी मानते हैं कि दुनिया भर को सेहत सम्भालने की अत्यंत प्राचीन पद्धिति , आयुर्वेद और योग भारत की देन है।  भारत ,  सेहत संभालने के लिए दुनिया भर की पद्धितियों , झाड़ -फूँक ,  जड़ी -बूटी , आसान कसरत , कठिन व्यायाम , यूनानी , होमियोपैथी ,  चीनी एक्यूपन्क्चर - एक्यूप्रेसर से लेकर आधुनिक एलोपैथी , नैचुरोपैथी और उत्तर आधुनिक अलटरनेटिव मेडिसीन  तक अपनाने से नहीं हिचका है।

नीम
भारत में श्रुति परम्परा से  कायम एक पुराना किस्सा है जिसका लब्बो -लुबाब यह है कि कभी किसी जमाने में चीन के एक राजकीय वैधराज ने भारत के अधिकतम ख्याति के  वैधराज की योग्यता को जांचने -परखने उनके पास एक ऐसे चीनी व्यक्ति को भेजने की व्यवस्था कर दी जो मरणासन्न था।  भारतीय वैधराज उसे देखते ही सब ताड़ गए।  यह भी समझ गए कि चीनी वैधराज ने उस व्यक्ति का
उपचार स्वयं करने में असफल रहने के बाद ही उसे कुछेक अन्य चीनियों की टोली संग भारत भिजवाया है. भारतीय वैधराज  ने  चीनियों की टोली से कहा कि वे उस मरणासन्न व्यक्ति को वापस ले जाए।  चीनी टोली ने सहम कर कहा कि उस व्यक्ति का  उपचार तो भारत लाने से भी नहीं हो सका और अब वह व्यक्ति वापसी के लम्बे रास्ते में ही परलोक सिधार जाएगा।  ऐसे में वे चीनी वैध को क्या जवाब देंगें।

भारतीय वैधराज ने किंचित मुस्कान के साथ कहा कि उस मरणासन्न व्यक्ति का और कहीं नहीं भारत में ही उपचार संभव है और वह हो जाएगा।  बस इतना ध्यान रखना कि यह व्यक्ति चीनी वैध के पास वापस पहुँचने के पहले लम्बी यात्रा के भारतीय मार्ग में नीम वृक्ष तले ही सोए , नीम का दांतुन कर , सिर्फ नीम के ही पत्ते , फल -फूल खाए , नीम का ही रस पीए।  हाँ , यह सुनिश्चित करना कि वह चीन पहुँचने से पहले और कुछ भी नहीं खाए-पीए। नीम भारत में ही मिलेगा  , भारत के बाहर शायद ही कहीं। चीन  में तो नीम बिल्कुल नहीं मिलेगा , मिलता होता तो तुम्हारे वैध को इसे भारत में मेरे अथवा किसी भी वैध के पास जरुरत नहीं पड़ती।  वह मरणासन्न व्यक्ति , भारतीय मार्ग में ही पूर्णतया स्वस्थ होकर चीनी वैध तक पहुँच गया।  चीनियों ने भारतीय वैधराज का लोहा मान लिया और उन्हें भारत की अपेक्षाकृत बेहतर सेहत का कुछ राज भी समझ में आ गया।  लेकिन यह किस्सा सैंकड़ों बरस पहले का है।

 प्रेशर कूकर
अब भारत में भी सभी जगह नीम के वृक्ष आसानी से देखने को भी नहीं मिलते। भारतीय जड़ी -बूटी के भी भविष्य  में  सहज उपलब्धता की संभावना खतरे में पड़ती नजर आती है।  भारतीयों का रहन -सहन , पहनावा ही नहीं खान -पान बहुत बदल गया है। मसालों के लिए औपनिवेशिक साम्राज्यों का निशाना बने भारत में मसाला पीसने के लिए सिलबट्टा नगरों में तो नहीं ही दिखता है।  मसाला पीसने , ग्राइन्डर के इस्तेमाल पर जोर  है। गाँव -देहात में भी हल्दी , जीरा ,  धनिया  और  कश्मीरी  से लेकर गोल , काली , लाल मिर्च सभी मसालों के पाउडर का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा  है. प्रेशर कूकर के आविष्कार के  बाद से लगभग हर रसोई में दाल से लेकर भात पकाने  उसी का इस्तेमाल किया जा रहा है।  हमारे सेहत की " सीटी " बज गई है.

स्वास्थ्य  बीमा
अंग्रेजी में कहावत है ' प्रीवेन्शन इज बेटर दैन रिमेड़ी " , मतलब व्याधियों  उपचार से उनके निरोधक उपाय बेहतर है।  निरोधक उपायों की कमी की चर्चा संक्षेप में उपरोक्त सन्दर्भों में की जा चुकी है।  अब बारी उपचार के उपायों की चर्चा की है।  लेकिन मौजूदा  हालात क्या हैं ? आम हिन्दुस्तानियों की औसत सेहत कैसी है ? आने वाले कल को  क्या होने वाला है ? उपचार की व्यवस्था में अगर किसी गड़बड़ी का अंदेशा है तो उससे बचने के क्या उपाय किए जा सकते हैं।  इन उपायों पर कितना खर्च आएगा। इनमेंसे कितने उपाय लोककल्याणकारी राजकाज की संविधान -सम्मत नीति के तहत सरकार करेगी , कौन - कौन उपाय का ठेका निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधा और बीमा कम्पनियों के हवाले किये जाएंगे और जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी की भी सेहत की कितनी जिम्मेवारी खुद उसके और उसके परिजनों पर होगी ? सवाल बहुत हैं और जवाब बहुत कम।  

सेहत के मुद्दे के समाधान के शॉटकट रास्ते नहीं है।  लेकिन भारत में 1990 के दशक में तथाकथित आर्थिक उदारीकरण और
निजीकरण को प्रोत्साहित करने की  नीति लागू होने के बाद के नतीजों की बानगी इस तथ्य से मिल सकती है कि देश की वाणिज्यिक राजधानी , मुम्बई में इन वर्षों में राजकीय अस्पतालों में इक्का -दुक्का बिस्तर का ही इजाफा हुआ है और बिहार के सहरसा जिला के  बसनही  गाँव में भारत की आजादी बाद के शुरुआती दशक में ही खोले गए उस प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर बरसों से कोई डॉक्टर , कम्पाउण्डर , नर्स क्या , किसी मरीज की भी आवाजाही बंद हो गई जहां शिशु जन्म के लिए सीजेरियन ऑपरेशन तक की कामचलाऊ व्यवस्था थी।  उस केंद्र के संचालन के लिए सरकार का सालाना खर्च अभी करीब 5 लाख रूपये है , उसपर लिखी सूचना में डॉक्टर का मोबाईल नम्बर भी अंकित है।  लेकिन उस केंद्र के इर्द -गिर्द बकरियां चरती हैं उसके कई मील तक  दायरे में सूई लगाने तक की कोई सरकारी सुविधा उपलब्ध नहीं है।


मोदी केयर
मोदी सरकार के दौरान  स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही । सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक़ देश के सकल घरेलू उत्पाद का बामुश्किल 4 प्रतिशत ही इस मद में  खर्च होता है जबकि चीन में 8.3 प्रतिशत, रूस  में 7.5 प्रतिशत और  अमेरिका में 17.5 प्रतिशत खर्च होता  है। चीन की  1. 41 अरब आबादी के  97 प्रतिशत  को " पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम " की सुविधा प्राप्त है। वित्त वर्ष 2018 -19 के अपने बजट में  मोदी सरकार ने  " दुनिया की सबसे बड़ी स्वाथ्य बीमा योजना " शुरू करने की घोषणा की.

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश इस बजट में उक्त योजना को ‘ मोदी केयर ’ के नाम से विभूषित कर दिया गया। इसकी कलई खुलने में देर नहीं लगी।  सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया - ‘मोदी केयर’ का मतलब एक व्यक्ति पर केवल 40 रुपये का सरकारी खर्च।  श्री जेटली  ने बजट  में दावा किया  कि इस योजना से लगभग 50 करोड़ लोगों को लाभ होगा, हर साल प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपये का मेडिकल खर्च दिया किया जाएगा। पर नए बजट में स्वास्थ्य - परिवार कल्याण  मद में 52 हज़ार
800 करोड़ रुपये का जो प्रावधान हैं वह पिछ्ले बजट की तुलना में  2.5 प्रतिशत ही बढ़ा है। केंद्र सरकार की नई स्वास्थ्य नीति में स्वास्थ्य बीमा के लिये 2000 करोड़ रूपये का जो प्रावधान  हैं वह केरल राज्य के बजट में स्वास्थ्य मद में प्रावधानित रकम से भी ज्यादा नहीं है. खुदा खैर करे  भारत की सेहत की।

Vanishing Joint Family In India

http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/14553/Gayab

Sunday, June 10, 2018

Mughal-E-Azam Poster : 00

TO BE OR NOT
It was to be latter . It was first not  to be . So the film named in this poster was not made the way it talked about. K. Asif made this film in the other way that we have seen.  

Monday, April 2, 2018

Links of Published Reports 2018 : History - Bhagat Singh


http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/4/13366/kyun-hain-bhagat-singh-ae-aajam

Links of

Published Reports 2018 : Literature : On Poet -Professor Kedarnath Singh 

Link :
http://www.thecitizen.in/index.php/hi/NewsDetail/index/9/13348/Professor---About-poet-Kedarnath-Singh