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Saturday, April 2, 2022

सीपी कमेंट्री एक अप्रैल से वित्त वर्ष कैलेंडर की परिपाटी हिन्दुस्तानी है

 

सीपी कमेंट्री

एक अप्रैल से वित्त वर्ष कैलेंडर की परिपाटी हिन्दुस्तानी है

चंद्र प्रकाश झा * 

स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक











दुनिया के तमाम देशों की तरह ही भारत में भी कैलेंडर वर्ष पहली जनवरी को शुरू होता है पर नया वित्त वर्ष एक अप्रैल से आरंभ करने की परिपाटी है ,जो संयोग से मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है। नए वित्त वर्ष की इस परिपाटी का चार सौ बरस से ज्यादा का रोचक इतिहास है। सन 1582 से पहले नया चंद्र वर्ष , बैशाखी त्योहार और बांग्ला नव वर्ष ही नहीं बल्कि तमिल और मलयालम नव वर्ष भी एक अप्रैल से शुरू करने की प्रथा रही थी। यह खेतों से नई फसल के घर आने और वित्तीय लेन देन के नए खाता-बही की शुरुआत का भी शुभ दिन दिन माना जाया है। ये दिन विभिन्न देशों में बसे भारतीय मूल के लोग भी बड़े उत्साह से मनाते है। इस दिन बच्चे ही नहीं उनके माता-पिता भी नया परिधान पहनते हैं। 

प्रामाणिक ऐतिहासिक अध्ययन से पता चलता है भारत करीब साढे चार सौ बरस पहले विश्व व्यापार के बड़े केंद्रों में शामिल था। तब विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी अनुमानित 23 फीसद थी। वही ब्रिटेन का हिस्सा केवल 0.2 फीसद था। भारत की संपदा से अन्य देश आकर्षित थे। इंग्लैंड ने भारत के व्यापार में अपना फायदा बढ़ाने के लिए सन 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई। इसी उद्देश्य से हॉलैंड ने 1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रांस ने 1664 में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने केरल , बंगाल और तमिलनाडु पहुँच कर देखा वहाँ के लोग धूमधाम से पहली अप्रैल को नव वर्ष मनाते हैं। मौरीशस में बसे भारतीय मूल के शोधार्थी और डायसपोरा नेटवर्क न्यूज के संपादक अशोक मोटवानी के मुताबिक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अपने वाणिज्यिक कारोबार का आरंभ एक अप्रैल से ही करना शुरू कर दिया। वह ग्लोबल ऑर्गनाइजेशन ऑफ परसंस ऑफ इंडियन ऑरिजिन (गोपियो) नामक संस्था की मीडिया काऊँसिल के सह अध्यक्ष भी है।

मुगल बादशाह जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर (1542-1605) ने बैशाखी का दिन ही अपनी हुकूमत के लिए फसली दिवस के रूप में अपनाया था। गौरतलब है कि बादशाह अकबर ने इसके लिए इस्लामी कैलेंडर  नहीं अपनाया जिसमें चंद्र वर्ष से 11 कम सिर्फ 354 दिन होते हैं। फसली त्योहार का दिन ग्रेगेरियन कैलेंडर में किये गए सुधार परिवर्तन के बाद 14 अप्रैल को पड़ने लगा। बैशाखी, विशु आदि के जो त्योहार नव चंद्र वर्ष के दिन एक अप्रैल को पड़ते थे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय वर्ष आरंभ करने का भी दिन बन गया। लेकिन अब ये फ़सली त्योहार 13 या 14 अप्रैल को पड़ता है जो क्रिश्चियन कैलेंडर  में पिछली चार सदी में लाए गए  परिवर्तन के अनुरूप है। परिवर्तित जूलियन कैलेंडर  और 1582 से पहले के अपरिवर्तित जूलियन कैलेंडर में एक जनवरी और 1 अप्रैल चंद्र वर्ष के बैसाख और मकर संक्रांति के दिन पड़ते थे। 

24 फरवरी 1582 को पोप ग्रेगरी ने धर्मादेश जारी कर ग्रेगेरियन कैलेंडर सुधार लागू किये जिसका सभी पश्चिमी देशों ने अनुकरण किया। ग्रेगेरियन कैलेंडर सुधारों में से नव वर्ष दिवस को 25 मार्च से एक जनवरी करना और 1582 के बरस में 10 दिन की कमी लाना शामिल था। इसके अनुरूप 4 अक्टूबर 1582 के बाद 5 अक्टूबर नहीं बल्कि 15 अक्टूबर आया। इस तरह क्रिश्चियन कैलेंडर को 10 दिन आगे सरका दिया गया। कैलेंडर सुधार के तहत 1700, 1800 और 1900 के शताब्दि वर्ष लीप ईयर नहीं गिने गए क्योंकि ये नंबर 400 से विभाज्य नहीं हैं। परिणाम ये हुआ कि क्रिश्चियन कैलेंडर में और तीन दिन जुड़ गए । साथ ही पहली अप्रैल और बैसाखी के दिन में अंतर 13 दिनों का हो गया। यही कारण है कि बैसाखी का दिन अब 13 या 14 अप्रैल को पड़ता है। यही कारण मकर संक्रांति का दिन 13 या 14 जनवरी को पड़ने का है।

प्रारंभ में यूरोप के अधिकतर देश 25 मार्च को अपना नव वर्ष मनाते थे जो हिन्दू नव चंद्र वर्ष अथवा विष्णु प्रतिपदा के समीप है। 1582 में पोप के धर्मादेश के बाद केवल इटली, स्पेन , पुर्तगाल और पोलैंड के कैथोलिक देशों ने परिवर्तित क्रिश्चियन कैलेंडर को अपनाया। अगले दो बरस के भीतर फ्रांस,  लगजम्बर्ग जर्मनी , बेलजियम , स्विट्जरलैंड , नीदरलैंड भी उनके साथ हो गए। हंगरी ने इसे 1587 में अपनाया।  यूरोप के लगभग सभी अन्य देशों ने भी इसे 1699 से 1701 के बीच अपना लिया। ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों ने 1752 में ग्रेगेरियन कैलेंडर अपनाया। स्वीडन ने 1753 में , जापान ने 1873 में , मिश्र ने 1875 में , रूस और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों ने 1912 से 1919 के बीच और तुर्की ने 1927 में इसे अपनाया। एक अप्रैल यूरोप में 1582 तक बैसाखी के दिन पड़ता था, ये संबंध ब्रिटेन में 1752 तक और रूस में 1918 तक रहा।

 

राजस्व वर्ष आम तौर पर आय कर की रिपोर्ट के लिए माना जाता है। इसे वित्त वर्ष और बजट वर्ष भी कहा जाता है। उत्तर आधुनिक युग की सरकारों के नियमन कानून के तहत हर 12 माह पर हिसाब किताब और कराधान के लिए ऐसी रिपोर्ट मांगी जाती है। लेकिन कोई जरूरी नहीं यह अवधि है कैलेंडर वर्ष के अनुरूप ही हो। अलगअलग देशों में और किसी एक देश की अलग -अलग कंपनियों में भी राजस्व वर्ष अलग अलग हो सकते है। अमेरिका की शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों में से करीब 65 फीसद का राजस्व वर्ष और कैलेंडर वर्ष एकसमान है। यूनाइटेड किंगडम में भी यही स्थिति है। कई विश्वविद्यालय के राजस्व वर्ष का अंत गर्मियों में होता है। पाकिस्तान में राजस्व वर्ष 1 जुलाई को शुरू होता है। चीन में सभी के लिए राजस्व वर्ष और कैलेंडर वर्ष एक जनवरी को शुरू होकर 31 दिसंबर को खत्म होता है।  अमेरिका की सरकार का राजस्व वर्ष 1 अक्टूबर को शुरू होता है और 30 सितंबर को खत्म होता है।

बहरहाल , अलग -अलग देशों में राजस्व वर्ष अलग -अलग हैं लेकिन फसली वर्ष कमोबेश हर जगह एक समान है।

Wednesday, February 23, 2022

संगीत की संगत

 


संगीत की संगत  

जन्म से मृत्यु और श्रम से फुरसत तक , कहाँ नहीं संगीत 






 

संसार की रचना जब भी हुई होगी तभी से संगीत भी है. किसी भी मां को अपनी असह्य प्रसव-पीड़ा के बाद पैदा शिशु का रुन्दन-क्रंदन,संगीत सदृश लगना स्वाभाविक है. किसी भारी चीज को रस्से से बाँध कर उठाते श्रमिकों के बीच, ‘ जोर लगा के होइसा , हौले -हौले होइसा , प्रेम से बोलो होइसा , जोर से बोलो ‘ , आदि-आदि  के सामूहिक स्वर, संगीतमय धुन ही तो है!

ईश्वर की आराधना में वैदिक ऋचाओं के मंत्रोचारण , भजन -कीर्तन गायन , शंख , घंटा -घड़ियाल , ढोल , मजीरा , मृदंग आदि का वादन ,पाँचों वक़्त की नमाज अता करने की ताकीद करने के लिए मस्जिद से दी जाने वाली  अलाप -जैसी अजान ,खुदा से महबूब की तरह मोहब्बत की अभिव्यक्ति में हथेलियों की गुंजायमान थाप के साथ गाई जाने वाली कवालियाँ , गुरुग्रन्थ साहिब की शबद-वाणी , बौद्ध जातक कथाओं का सुमधुर पाठ , गिरजाघरों में प्रभू ईसा मसीह की सामूहिक प्रार्थना के समय बजाई सुरीली घंटियाँ , संतों के दोहों का सस्वर उच्चारण, सूफी गीत -संगीत , आल्हा -उदल  , बिरहा ,  गृहिणी की मंद -मंद हँसी , पुरुषों के ठहाके , बच्चों  की किलकारी ,कोयल की कूक ,चिड़ियों की चहचहाहट  , मुर्गे की बांग , गाय का रम्भाना , बकरी की मिमियाहट , घोड़े की द्रुत पदचाप , हिरणी की कुलाँचों की सनसनाहट , मोर -मोरनी  का पारस्परिक ध्वनिगत संवाद , जंगल के राजा की गर्जनाएं , रेगिस्तान में रेतीली बयार की अनुभूति , हिमालय पर्वत से टकराकर लौटती शीतल पुरबिया हवा , पश्चिम से उठती गर्म हवा के झोंके ,पर्वतों के शिखर से नीचे बहती नदियों का अविरल प्रवाह ,  अरावली से लेकर सह्याद्री ,विंध्य , मलाबार आदि की पहाड़ियों के झरनों का गुरुत्वाकर्षणीय उतार , समुद्र की उत्तंग लहरों का ध्वनि गत आरोह -अवरोह , कहाँ नहीं है संगीत ?

यह धारणा सही नहीं कि संगीत ,राजा -महाराजा और धनाढ्यों के संरक्षण से ही फला -फूला है। यह अलग बात है कि उनमें से भी बहुतेरों  को संगीत भाता रहा और इसलिए उन्होंने अपने राज दरबार और महफ़िलों में संगीतज्ञों की कदर की ,उनके गुजर -बसर के लिए रोजगार ,धन , आदि का प्रबंध किया , संगीत सीखने के केंद्रों को समुचित रूप से प्रोत्साहित किया और नवसीखिए को संगीत की निपुणता प्राप्त करने के लिए वजीफे दिए.

यह सही है कि भारत में श्रुति की परम्परा रही और इतिहास आधुनिक युग तक मौखिक रूप से ही दर्ज होता आया। संगीत की दोनों , हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत की शिक्षा गुरु -शिष्य परम्परा और ग्वालियर , कैराना , आदि घरानों के माध्यम से ही प्रसारित हुई।यह भी सही है कि शतरंज की चालों से लेकर संगीत तक के लिखित वैज्ञानिक नोटेशन को पाश्चात्य जगत से सीखना पड़ा।

लेकिन जब हिन्दुस्तानी , संगीत के नोटेशन सीख गए तो उनकी रची धुनों के नोटेशन के आधार पर ऐसी धुनें उनके गुजर जाने के बाद भी संगीत -बद्ध किए जाने लगा. मिसाल के तौर पर , भारत के प्रेमी और पाकिस्तान की प्रेमिका की कहानी पर दिवंगत फिल्मकार यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई फिल्म वीर-जारा के संगीत  का जिक्र सबसे मुनासिब होगा.यह निर्विवादित तथ्य है कि परिपूर्णता के कायल मदन मोहन ने इन धुनों को त्याग दिया था और उनके गुजर जाने के बाद मिले इन नोटेशन के कॉपराईट खरीद कर यश चोपड़ा ने वीर -जारा फिल्म में इस्तेमाल किया। वीर-जारा में प्रयुक्त इन त्याज्य धुनों की भी अपार लोकप्रियता से सहज अनुमान लग सकता है कि उनकी अन्य फिल्मों में प्रयुक्त धुनों की स्तरीयता कितनी अधिक है। किन्ही संगीतज्ञ ने यूं ही नहीं कहा  है कि उन " पंजाबी फौजी " ने फिल्म -संगीत को जो दिया वो किसी ने नहीं दिया।

संगीत पर मीडिया में लेखन में उत्कृष्टता के लिए इंटरनेशनल फाउंडेशन ऑफ़ फाइन आर्ट्स और म्यूजिक फोरम (मुंबई ) के  2011 के पुरस्कार से नवाजे गए वरिष्ठ पत्रकार , कुलदीप कुमार के अनुसार कर्नाटक संगीत में कोई भी राग किसी भी प्रहर गाया-बजाया जा सकता है. लेकिन हिंदुस्तानी संगीत में हर राग के गायन -वादन के प्रहर निर्धारित हैं।पूरे दिन को तीन-तीन घंटों के कुल आठ प्रहर में बांट कर यह निर्धारित है कि किस राग का किस प्रहर में गायन -वादन  श्रेयस्कर है। पूर्वाह्न सात से दस बजे तक के लिए निर्धारित रागों में कोमल (शुद्ध मध्यम ) का इस्तेमाल होता है लेकिन अपराह्न  सात से दस बजे  तक के निर्धारित रागों में तीव्र मध्यम का प्रयोग श्रेयस्कर लगता है।

भारतीय  संगीत की विराट परम्परा अनादि काल से प्रवाहित होती रही और मध्यकाल में मुसलमानों के भारत आगमन के बाद , दो धाराओं में विभक्त हो गई। दक्षिण की धारा ने अपने मूल स्वरूप को लगभग बचाए रखा पर  उत्तर की धारा में मुसलमानों के साथ आया अरबी, ईरानी और मध्य एशिया का संगीत , घुलता-मिलता गया जिसके फलस्वरूप  ध्रुपद की जगह ख़याल, ठुमरी, टप्पा, तराना आदि स्वरूपों में प्रादुर्भाव हुआ , लेकिन , हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत की भी धाराओं में ही पारस्परिक सांगीतिक परंपराओं के समावेश का सिलसिला  जारी है। मौजूदा परम्परा ,  विष्णु नारायण भातखंडे और विष्णु दिगंबर पलुस्कर से बहुत प्रभावित है।  भातखंडे ने स्वयं कुछ पुस्तकें " चतुर पंडित " नाम से संस्कृत में लिखीं। उन्होंने रागों के स्वरूप-निर्धारण और सैद्धांतिक आधार पर वर्गीकरण करने  का कार्य किया और पलुस्कर ने संगीत की शिक्षण पद्धति विकसित करने का कार्य किया। भारतीय संगीत का अब विश्वविद्यालयों में विधिवत शिक्षण हो रहा है।

 भजन गायकी की भी स्तरीयता है। जाट रेजिमेंट के सेवानिवृत्त कर्नल और खुद शौकिया पियानो -वादक हरेंद्र  झा का कहना है कि " रामधुन " जैसे अति लोकप्रिय भजन को भारतीय पियानो वादक , ब्रायन सेलास ने पियानो पर संगीतबद्ध कर उसे असाधारण स्तरीयता प्रदान की है.

मृत्यु उपरान्त शवयात्रा में " राम नाम सत्य है सबकी यही गत है " का शवयात्रा में शामिल लोगों का सामूहिक उच्चारण भी  संगीत ही है.

* प्रकाशन : नेशनल दुनिया (दिल्ली ) वसंत 2018

नींद "अचेत " ध्यान है

 

नींद "अचेत " ध्यान है



कहते हैं नींद "अचेत " ध्यान है और" सचेत " ध्यान , बिन -अभ्यास सम्भब नहीं है. कुछ लोगों का अचेत ध्यान भी मुश्किल से लगता है.नींद की ' गोली ' खानी पड़ती है.एक अभ्यास सा बन जाता है. ध्यान पर ध्यान दिया तो कई जानकारी मिली. तनाव , नाकारात्मक विचार -प्रवाह आदि से उबरने में दवा के साथ ' ध्यान ' मददगार है.चित्त साकारात्मक करने प्रारम्भिक अभ्यास का एक सरल तरीका मिला.

राउंड अप चुनाव- 02

 


राउंड अप चुनाव
उत्तर प्रदेश चुनाव के चौथे चरण में बुधवार, 23 फरवरी 2022 को लखनऊ समेत 9 जिलों; पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर और बांदा की 59 सीटों पर वोटिंग खरामा-खरामा जारी है। इनमें 7 जिले अवध के हैं। अवध की आबादी में अनुसूचित जाति के काफी लोग है। सीतापुर में सबसे ज्यादा 32 फीसद दलित हैं। हरदोई, उन्नाव, रायबरेली में 30 फीसद दलित है। सबसे कम 21 फीसद दलित वोटर लखनऊ में हैं। अवध में दलित समुदाय में बड़ी संख्या गैर जाटव वोटर हैं जो बंटा हुआ है।
यूपी, उत्तराखंड , पंजाब , गोवा और मणिपुर की सभी सीटों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से डाले सभी वोट की काउंटिंग वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल ( वीवीपीएटी ) मशीनों से निकली पर्चियों से सीमित मिलान के बाद एकसाथ 10 मार्च को होगी। उसी दिन सूर्यास्त तक सारे परिणाम मिल जाने की आशा है।
मणिपुर
मणिपुर में परिवर्तित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार अब वोटिंग 28 फरवरी और 5 मार्च को होगी. मणिपुर में कांग्रेस की स्थिति भाजपा से मजबूत बताई जाती है। जिसने सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और जेडी (एस) से गठबंधन किया है।
अवध
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का अवध क्षेत्र की करीब दर्जन भर सीटों पर असर है। 2012 के चुनाव में बसपा की 10 सीटों पर जीत हुई थी जों 2017 में घटकर 6 रह गई। माना जाता है अवध में 2017 में सबसे ज्यादा 43 फीसद गैर-जाटव वोट पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ( सपा ) को और 31 फीसद मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा) को मिले। उस बार बसपा को गैर जाटव वोट 10 फीसद और जाटव वोट 86 फीसद मिलने का आंकलन था।
अवध क्षेत्र में हिंदुत्व का मुद्दा हावी करने के मकसद से भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक ही दिन अयोध्या में 3 चुनावी सभाएं कीं। कुल सात में से पांचवें चरण में 27 फरवरी को पूर्वांचल के 11 जिलों की 61 सीटों पर वोटिंग होगी।
यूपी विधानसभा की कुल 403 में से 118 सीटें अवध के ही 21 जिलों में पसरी है। भाजपा को इस क्षेत्र में 2017 में 97 और 2012 में 10 सीटें मिली थीं। सपा को 2012 में 90 सीटें मिली थीं जो 2017 में घटकर 12 रह गईं।
छुट्टा सांड
प्रधानमंत्री एवं भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने भी कबूल कर लिया कि यूपी में छुट्टा सांड बड़ा मुद्दा है। भाजपा अभी तक इसे कोई बड़ा मुद्दा नहीं मानती थी। मोदी जी ने भाजपा की उन्नाव चुनावी रैली कहा इसके निवारण के लिए 10 मार्च के बाद नई व्यवस्थाएं की जाएंगी।
तीसरे चरण की वोटिंग का ट्रेंड भाजपा के लिए खतरे की घंटी बताई जाती है जिसमें 59 सीटों पर 61 फीसद वोट डाले गए। सपा के असर वाले इलाकों में औसत से ज्यादा मतदान हुआ। इन्हीं सीटों पर 2017 में 62.2 फीसद वोटिंग हुई थी। 2012 में इन सीटों पर 59.8 फीसद वोटिंग हुई थी। 2012 के चुनाव में इन सीटों में से 37 सीटें सपा जीती थी। 2017 में बीजेपी ने इन 59 सीटों में से 41 सीट जीत ली।
इस बार सपा के गढ़ इटावा, मैनपुरी आदि में वोटिंग औसत से ज्यादा हुई। अखिलेश यादव की करहल सीट पर पिछली बार से 3 फीसद ज्यादा मतदान हुआ है। यादव बहुल करीब दो दर्जन सीटों पर औसत से 2 फीसद ज्यादा मतदान हुआ। इन क्षेत्रों में यादव आबादी 30 से 50 फीसद है।
भाजपा के असर वाले बुंदेलखंड के पांचों जिलों; झांसी, हमीरपुर, ललितपुर, महोबा और कानपुर देहात में 2017 की तुलना में काफी कम वोट पड़े।
रोजगार
गोंडा की चुनावी रैली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रोजगार के मुद्दे पर युवकों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। युवकों ने रोजगार देने की मांग को लेकर रैली में जोरदार नारेबाजी की। युवाओं की मांग रक्षा मंत्रालय से ही थी। वे सेना में भर्ती शुरू करने की मांग कर रहे थे। युवाओं ने " सेना में भर्ती चालू करो " और " हमारी मांगें पूरी करो " के नारे लगाएं। राजनाथ सिंह ने " होगी, होगी... चिंता मत करो, आपकी चिंता हमारी भी है, कोरोना वायरस के चलते थोड़ी मुश्किलें कहकर युवाओं को शांत करने की कोशिश की।
मंत्री
मोदी जी , योगी जी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अलावा सपा के अखिलेश यादव, बसपा की मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने धुंआधार प्रचार किया। इस चरण में योगी सरकार के दो मंत्रियों के साथ ही मोदी सरकार के भी मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इनमें लखनऊ से सांसद एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और लखीमपुर से सांसद एवं गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी शामिल हैं। इस चरण में योगी सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक( लखनऊ कैंट ) और नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन ( लखनऊ पूर्व ) सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं।अन्य प्रमुख उम्मीदवारों में हरदोई से विधान परिषद उपाध्यक्ष नितिन अग्रवाल और रायबरेली सदर सीट से अदिति सिंह ( भाजपा) चुनाव मैदान में हैं।
इस चरण में कुल 2 करोड़ 12 लाख 90 हजार 564 मतदाताओं के सायंने 624 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। वोटरों में 1.14 करोड़ पुरुष, करी 98 लाख महिला और 972 थर्ड जेंडर के हैं। चुनाव आयोग ने 13 हजार 813 मतदान केन्द्रों पर कुल 24 हजार 581 पोलिंग बूथ पर बनाए है।
चौथे चरण में अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित 16 सीटों समेत जिन 59 सीटों पर मतदान होना है उनमें पीलीभीत, बरखेड़ा, पूरनपुर (सु), बीसलपुर, पलिया, निघासन, गोला गोकरननाथ, श्रीनगर (सु), धौरहरा, लखीमपुर, कस्ता (सु), मोहम्मदी, महोली, सीतापुर, हरगांव (सु), लहरपुर, बिसवां, सेवता, महमूदाबाद, सिधौली (सु), मश्रिखि (सु), सवायजपुर, शाहाबाद, हरदोई, गोपामऊ (सु), सांडी (सु), बिलग्राम-मल्लांवा, बालामऊ (सु), संडीला, बांगरमऊ, सफीपुर (सु), मोहान (सु), उन्नाव, भगवंतनगर, पुरवा, मलीहाबाद (सु), बक्शी का तालाब, सरोजनीनगर, लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य, लखनऊ कैंट, मोहनलालगंज (सु), बछरांवा (सु), हरचंदपुर, रायबरेली, सरेनी, ऊंचाहार, तिंदवारी, बबेरू, नरैनी (सु), बांदा, जहानाबाद, बिंदकी, फतेहपुर, अयाहशाह, हुसैनगंज व खागा (सु) सीट शामिल है।






पंजाब




पंजाब में 117 विधानसभा सीटों पर के मुकाबला में इस बार 5 पार्टियों के उतरने के बावजूद वोटरों में ज्यादा उत्साह नहीं दिखा। पिछली बार के 77 प्रतिशत वोटिंग के मुकाबले इस बार 5.25 फीसद कम वोट पड़े। इस बार 71.95 फीसद ही मतदान हुआ जो पिछले 15 वर्षों में सबसे कम मतदान है। इस बार पंजाब में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के अलावा भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह के नए बनाए दल , पंजाब लोक कांग्रेस ने भाजपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा है। किसानों की पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा ने भी करीब एक सौ सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
राज्य के करीब 2.14 करोड़ मतदाताओं ने 117 सीटों पर 1,304 उम्मीदवारों के चुनावी भाग्य पर अपना फैसला दे दिया हैं। इनमें मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू , कैप्टेन अमरिंदर सिंह , पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उनके पुत्र एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल और मुख्यमंत्री पद के लिए आम आदमी पार्टी के दावेदार भगवंत मान शामिल हैं।
उत्तराखंड
उत्तराखंड विधान सभा की सभी 70 सीटों पर मतदान एक ही चरण में 14 फरवरी को पूरा हो गया जिसमें 65.37 फीसद वोटिंग हुई जो 2017 के पिछले चुनाव से 0.18 प्रतिशत कम है। महिलाओं का मतदान , पुरुषों से अधिक रहा जिसका एक कारण मंहगाई के प्रति उनका रोष बताया जाता है। इन सीटों के लिए 11,697 मतदान केंद्र बनाये गये. इन पर कुल 632 उम्मीदवार है।
लोगों का अनुमान है अधिकतर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है। चुनाव से ठीक पहले भाजपा से निष्कासित होने के बाद कांग्रेस में शामिल पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने इस बार खुद चुनाव नहीं लड़ा । उनके मुताबिक कांग्रेस करीब 40 सीटों पर जीत अपनी सरकार बनाएगी। अभी मुख्यमंत्री भाजपा के पुष्कर सिंह धामी है। भाजपा पाले में दो पूर्व मुख्यमंत्री , त्रिवेंद्र सिंह रावत और रमेश पोखरियाल के अलावा कांग्रेस से आए सतपाल महाराज भी है। आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल हैं।
गोआ
इस राज्य की सभी 40 सीटों पर एक ही चरण में 14 फरवरी को वोटिंग पूरी हो चुकी है जिसमें करीब 79 फीसद मतदान हुआ. मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने अपनी भाजपा की जीत का विश्वास व्यक्त किया है. भाजपा की टक्कर कांग्रेस से है.

Sunday, February 20, 2022

राउंड अप चुनाव -01

 








20 फरवरी 2022 को पंजाब विधान सभा की सभी 117 सीटों और उत्तर प्रदेश के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग बहुत तेज रफ्तार से हुई। काउंटिंग 10 मार्च को निर्धारित है। सुबह 11 बजे तक पंजाब में 17.77 फीसद और उत्तर प्रदेश में 21.18% वोटिंग हो चुकी थी. पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने गांव , सैफई में एक स्कूल जाकर वोट दिया। वह सपा के मौजूदा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता हैं.

यूपी में दो दौर की वोटिंग पूरी हो गई है। निर्वाचन आयोग से मिले फायनल आंकड़ों के मुताबिक दूसरे चरण में मुस्लिम और दलित बहुल 9 जिलों की 55 सीटों पर 2.02 करोड़ वोटर में से 64.42 फीसद ने वोट डाले थे , जो 2017 की पिछली वोटिंग से 9.45 फीसदी कम है. इन 55 सीटों में से भाजपा ने 2017 में 38 जीती थीं। तब आपसी गठबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) को 15 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। सपा की 15 में 10 सीटों पर मुस्लिम जीते थे। पहले चरण में 10 फरवरी को जाट बहुल 54 सीटों पर वोटिंग हुई , जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) को 46 फीसद वोट मिले थे। उस क्षेत्र की आबादी में 17 फीसद जाट और 24 फीसद मुस्लिम वोट हैं।

 

कहा जाता है कि पिछली बार मुस्लिम आधा वोट सपा और बसपा को चला गया था और गैर-जाटव दलित का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ हो लिया। इस बार अधिकतर जाट और मुस्लिम वोट भी जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) आदि के साथ सपा के बने “ महागठबंधन “ के साथ हो लेने की उम्मीदें है।



 

वोटिंग में हल्का अंतर

वोटिंग में हल्का भी अंतर होने से चुनाव परिणाम बदल जाते है। शिक्षित राज्य केरल में ये पुराना ट्रेंड है, जहां वोटों में बहुत कम अंतर होने से भी सरकार बदल जाती है। लेकिन इस बार इन 55 सीटों पर वोटिंग 3 फीसद कम होने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गठबंधन सरकार का भविष्य अधर में लटक गया है। भाजपा को जबरदस्त नुकसान और सपा महागठबंधन को बहुत फायदा होने का आंकलन है।

इन 55 सीटों पर 2012 के चुनाव में 65.17 फीसदी वोट पड़े थे , जो 2017 में थोड़ा बढ़कर 0.36 फीसद हो गए थे। वोटिंग में इस थोड़ी ही बढ़ोत्तरी से भाजपा को जबरदस्त फायदा हुआ था। पिछली बार इन सीटों में से भाजपा को 38 और सपा के कांग्रेस के साथ के गठबंधन को 17 सीटें मिली थीं. तब बसपा और आरएलडी को एक सीट भी नसीब नहीं हुई थी। इस बार इन 55 सीटों पर नए महागठबंधन के 19 , बसपा के 23 , कांग्रेस के 21 और तेलंगाना से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के 19 उम्मीदवार हैं. इन चार पार्टियों के कुल मिलाकर 77 मुस्लिम उम्मीदवार हैं।

 

पंजाब

बलात्कार के जुर्म में अदालत के ऑर्डर पर जेल में बंद “ डेरा सच्चा सौदा “ ( सिरसा , हरियाणा) के प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने परोल पर बाहर आने के बाद चुनावों में सक्रिय बताए जाते है।माना जाता है पंजाब की 117 में से 56 सीटों पर , खास कर मालवा क्षेत्र में डेरे का असर है। डेरा सूतरों के मुताबिक तलवंडी साबो से निर्दलीय उम्मीदवार हरमिंदर सिंह जस्सी को समर्थन देने कहा गया है जो राम रहीम का समधी है। जस्सी पहले कांग्रेस में थे। पार्टी टिकट नहीं मिलने से इस बार निर्दलीय खड़े हो गए हैं। इससे पहले वे तीन चुनाव हार चुके हैं।

 डेरा प्रमुख को 21 दिन की फरलो देने पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। जस्टिस बीएस वालिया ने समाना सीट से निर्दलीय उम्मीदवार परमजीत सिंह सोहाली की याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार को आदेश दिया कि वह वे सभी दस्तावेज कोर्ट में पेश करें जिसके आधार पर फरलो देने का निर्णय लिया गया।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोक साल (इनेलो) के प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के मुताबिक डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की पैरोल का भाजपा को पंजाब चुनाव में फायदा होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा देश भर के लोग भाजपा सरकार से नाराज है। भाजपा के जन प्रतिनिधि पार्टी छोड़ भाग रहे हैं। मुख्यमंत्री को भी लोग अपने क्षेत्र में हेलीकॉप्टर से उतरने नहीं देते हैं।उन्होंने पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ( बादल ) को समर्थन देने की बात कही।

 

 उत्तराखंड

 उत्तराखंड विधान सभा की सभी 70 सीटों पर मतदान एक ही चरण में 14 फरवरी को पूरा हो गया जिसमें 65.37 फीसद वोटिंग हुई जो 2017 के पिछले चुनाव से 0.18 प्रतिशत कम है। महिलाओं का मतदान , पुरुषों से अधिक रहा जिसका एक कारण मंहगाई के प्रति उनका रोष बताया जाता है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर जिन 10 राज्यों में है उनमें उत्तराखण्ड शामिल है। कुल 53 लाख 42 हजार 462 वोटरों में से 67.20 महिलाओं और 62.60 पुरुष ने भाग लिया। इन सीटों के लिए 11,697 मतदान केंद्र बनाये गये. इन पर कुल 632 उम्मीदवार है। लोगों का अनुमान है अधिकतर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है। एक सीट आम आदमी पार्टी को, दो उत्तराखंड क्रांति दल को, दो बहुजन समाज पार्टी को और तीन निर्दलीयों को मिल सकती हैं।चुनाव से ठीक पहले भाजपा से निष्कासित होने के बाद कांग्रेस में शामिल पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा । उनके मुताबिक कांग्रेस करीब 40 सीटों पर जीत अपनी सरकार बनाएगी। अभी मुख्यमंत्री भाजपा के पुष्कर सिंह धामी है। भाजपा पाले में दो पूर्व मुख्यमंत्री , त्रिवेंद्र सिंह रावत और रमेश पोखरियाल के अलावा कांग्रेस से आए सतपाल महाराज भी है।आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल हैं।

 

मणिपुर

मणिपुर में परिवर्तित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार अब वोटिंग 28 फरवरी और 5 मार्च को होगी. राज्य में भाजपा का किसी पार्टी के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन नहीं है। कांग्रेस का सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक, आरएसपी, जेडी (एस) के साथ गठबंधन है। मणिपुर में कांग्रेस की स्थिति भाजपा से मजबूत बताई जाती है।

 

गोआ

इस राज्य की सभी 40 सीटों पर एक ही चरण में 14 फरवरी को वोटिंग पूरी हो चुकी है जिसमें करीब 79 फीसद मतदान हुआ. मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने अपनी भाजपा की जीत का विश्वास व्यक्त किया है. भाजपा की टक्कर कांग्रेस से है.

आधी आबादी का चुनावों में क्या ?

 

चुनाव चर्चा

19 फरवरी 2022


आधी आबादी का चुनावों में क्या ?

चंद्रप्रकाश झा  

स्वतंत्र पत्रकार एवं पुस्तक लेखक




दुनिया भर की आधी आबादी के साथ जो होता रहा है वही
पुरुष सत्तात्मक भारत के मौजूदा चुनावों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में कमोबेश नजर आया। राहुल गांधी और प्रियांका गांधी वढेरा की माँ , सोनिया गांधी की एक सौ 37 बरस पुरानी कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों के चयन में इस बार महिलाओं को 40 फीसद हिस्सेदारी देने की घोषणा की थी। ये घोषणा सियासत की हवा से समाज की ठोस जमीन पर कितनी हद तक उतरी है इसका सही आंकलन तत्काल नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ये चुनाव अभी पूरे नहीं हुए है। आधिकारिक परिणामों की 10 मार्च को निर्वाचन आयोग की घोषणा के विस्तृत विश्लेषण से ही जमीनी वास्तविकताओं का पता चलेगा।

इस बीच , भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साढे सात बरस पुरानी सरकार ने हाल में संसद में ‘ बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक (2021) ‘ पारित कर कन्या विवाह की न्यूनतम आयु 18 बरस से बढ़ाकर अब 21 कर दी है। भाजपा को इससे चुनावों में महिलाओं को अपने पाले में लाने का लोभ होगा। लेकिन वह निश्चय ही भूल गई कुछ बरस पहले लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वालों में उसके ह्विप के खिलाफ वोट  देने में तत्कालीन सांसद और अभी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे। इस विधेयक का विरोध यूपी के अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की जातियों में सबसे मुखर यादव समुदाय के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी किया था।

 

महिलाओं के लिए 33 फीसद सीट आरक्षित करने की वैधानिक व्यवस्था करने के लिए एक विधेयक 2010 में ही संसद के उच्च सदन , राज्यसभा ने पारित कर दिया था। लेकिन इस विधेयक पर लोकसभा में कभी मतदान ही नहीं कराया गया। पुरुष सत्तात्मक सियासत इसमें अड़चने खड़ी करती रही है। वह विधेयक 15वीं लोकसभा के 2014 के चुनाव सम्पन्न होने के उपरांत भंग होने पर स्वतः निरस्त हो गया। भाजपा और कांग्रेस कहती रही है कि वे सत्ता में आने पर महिलाओं के लिए 33 फीसद सीटें आरक्षित करने की व्यवस्था करेंगी।पर दोनों ही इस आरक्षण को लेकर कोई खास गंभीर नज़र नहीं आती हैं। ये दल चाहते तो किसी अधिनियम के बिनया भी  2019 के लोकसभा चुनाव में 33 फीसद महिला प्रत्याशी चुनाव में उतार सकते थे। जैसा कि उस बार ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल (बीजेडी) और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ( टीएमसी ) ने कर दिखाया। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ कदम आगे बढ़कर लोकसभा और विधानसभा समेत सभी निर्वाचित विधायिकाओं  और सरकारी रोजगार में भी महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की घोषणा की जो अर्थहीन निकली।

 

2022 के इन चुनावों में कांग्रेस ने गोवा के इस बार के चुनाव में जीतने पर महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 फीसद आरक्षण देने का वादा टीएमसी ने वादा किया गोवा चुनाव के बाद उसकी सरकार बनती है तो राज्य में ‘ ग्रहलक्ष्मी कार्ड योजना ’ के तहत हर महिला को मासिक 5 हजार रुपए की मदद दी जाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने भी वादा किया गोवा में उसकी सरकार बनती है तो राज्य की महिलाओं को हर माह एक–एक हजार रुपए की वित्तीय सहायता दी जाएगी। इस पार्टी ने यही वादा पंजाब में भी किया है।





रायबरेली


यूपी की रायबरेली विधान सभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी अदिति सिंह को इस सीट पर 2017 के पिछले चुनाव में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार सवा लाख से ज्यादा वोट मिले थे।तब कांग्रेस और सपा का गठबंधन था। बसपा को भाजपा से कुछ ज्यादा वोट मिले थे। वह इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पाँच बार जीते अखिलेश सिंह की विदेश में पढ़ कर लौटी बेटी है। अखिलेश सिंह का 2019 में निधन हो गया। इस बार कांग्रेस ने डॉ मनीष सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा के प्रत्याशी राम प्रताप यादव हैं जो करीब दो बरस जेल में बंद रहने के बाद हाल में जमानत पर छूटे हैं। बसपा प्रत्याशी मोहम्मद अशरफ है।यह सीट रायबरेली लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र का ही हिस्सा है जहां से सोनिया गांधी चुनाव लड़ती और जीतती रही है। उनसे पहले इस लोक सभा सीट का प्रतिनिधित्व दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी करती रही थी। इसलिए भी रायबरेली के चुनाव में महिला उम्मीदवारों के संदर्भ का खास महत्व है। यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस ( यूपीए ) की अध्यक्ष सोनिया गांधी फिर जीतने वाली कांग्रेस की एकमात्र निवर्तमान सांसद रही.

 

 

बांकि है राजनीतिक मंजिलें महिलाओं की





2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि इनमें महिलाओं का भारी मतदान हुआ था। इनमें महिला प्रत्याशिओं का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन भी हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में 61 महिलाएं जीती थीं जिनकी संख्या 2019 के चुनाव में सर्वाधिक 76 हो गई। ये एक रिकॉर्ड हैं। लेकिन हक़ीकत और भी है. उस चुनाव में भी पुरुष प्रत्याशियों का ही बोलबाला था, जो कुल मिलाकर 7334 थे। महिला प्रत्याशियों की संख्या में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। कुल 8049 उम्मीदवारों में 10 फीसद से भी कम सिर्फ 717 महिलाएं थी जबकि देश में उनकी आबादी करीब आधी है। तुर्रा ये कि औसतन करीब 14 फीसद महिला उम्मीदवार ही जीत सकीं.

महिला प्रत्याशियों ने सबसे ज्यादा 33 फीसद जीत अपेक्षाकृत पिछड़े माने गए ओड़िसा में दर्ज की। केन्झार सीट से जीती 26 बरस की आदिवासी नेता चंद्राणी मुर्मू नई लोकसभा में सबसे युवा हैं. क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़े राज्य, राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर की लोकसभा सीट पर 48 बरस बाद पहली महिला , पूर्व मेयर ज्योति खण्डेलवाल ( कांग्रेस ) चुनाव मैदान में उतरी। पर वह पुरुष प्रत्याशी एवं निवर्तमान सांसद रामचरण बोहरा ( भाजपा ) से हार गईं।  जयपुर से पूर्ववर्ती राजघराना की गायत्री देवी 1962 से तीन बार स्वतंत्र पार्टी की सांसद रही थीं। इस राजघराना की दूसरी सदस्य दीया कुमारी ( भाजपा ) 2019 में राजसमंद सीट पर देवकीनंदन गुर्जर (कांग्रेस) को हरा कर निर्वाचित हुईं। दिवंगत गायत्री देवी उनकी दादी थीं. पूर्ववर्ती ही सही राजघरानों के दिन नहीं लदे हैं.पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराना की वंशज हैं और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह (भाजपा)  झालावाड़-बारां लोकसभा सीट से लगातार तीसरी बार जीते। 

 

2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी राज्यों में वोटर लिस्ट में महिला वोटरों की संख्या और उनके वोट देने में भी भारी इजाफा हुआ।सर्वाधिक शिक्षित और कई मामलों में देश में अव्वल केरल में ही नहीं, सामाजिक रेनेसाँ के साक्षी पश्चिम बंगाल, द्रविड़ आंदोलन की भूमि तमिलनाडू, अर्द्ध-सामंती बिहार,  अरब सागर तटवर्ती गोआ के अलावा पर्वतीय उत्तराखंड , मणिपुर , मेघालय , अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम ही नहीं लक्षद्वीप और

दादरा-नगर हवेली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान अधिक रहा।

अपनी परंपरागत सीटों से चुनाव मैदान में फिर उतरी भाजपा की 16 महिला प्रत्याशियों में से सुल्तानपुर से  केंद्रीय मंत्री मानेका गांधी , चंडीगढ़ से निवर्तमान सांसद किरण खेर (भाजपा) और नई दिल्ली सीट से निवर्तमान सांसद मीनाक्षी लेखी ( भाजपा ) की जीत हुई।

सवाल उठा कि स्वतंत्र भारत में सर्वाधिक 76 महिलाओं के 2019 में लोकसभा पहुँचने से ही देश में महिला साधिकारिता राजनीतिक रूप से हासिल हो गई है ?   हम जानते हैं कि भारत में विगत में इंदिरा गांधी जैसी महिला शासक होने के बावजूद हमारा समाज मूलतः

पितृसत्तात्मक ही है। हम यह भी देख चुके हैं कि भारत में शिक्षा प्रशासक एवं आम आदमी पार्टी प्रत्याशी  आतिशी मार्लेना पूर्व दिल्ली सीट पर भाजपा प्रत्याशी एवं पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर से हार गई और आंतकी हिंसा में आरोपित एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दोषसिद्ध हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वाली प्रज्ञा ठाकुर भाजपा की ही प्रत्याशी के रूप में भोपाल सीट से जीत गईं।





 

चुनाव में महिला के सन्दर्भ में एक अहम विश्लेषण यह भी है कि मतदान में महिलाएं अब पुरुषों की तुलना में अब 1.5 फीसद  ही पीछे रह गयी हैं। प्रथम दो आम चुनाव के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। 1962 में तीसरे आम चुनाव में कुल मतदाताओं में से 63 फीसद पुरुषों और 46 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाले थे।

' सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ' की अध्यक्ष यामिनी अय्यर ने एनडीटीवी न्यूज चैनल के प्रणय रॉय और दोराब सोपारीवाला की पुस्तक ' द वर्डिक्ट ' और निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के हवाले से बताया कि वोटर लिस्ट में महिला मतदाताओं के नाम दर्ज करने में काफी वृद्धि हुई है।  भारत में महिला मतदाताओं की संख्या 2014 के 47 प्रतिशत से बढ़कर 48.13 प्रतिशत हो गई है। इसलिए भी 2019 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं के मतदान का हिस्सा और बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई थी। पर महिला प्रत्याशियों की संख्या 1962 से 1996 के बीच कुल उम्मीदवारों का 5 फीसद से अधिक नहीं थी। 2019 में इसमें दो फीसद का ही इजाफा हुआ।

ओड़िसा में बीजेडी ने अपने उम्मीदवारों में से 33 फीसद हिस्सा महिलाओं को देने का चुनाव से पहले  किया वादा निभाया। उसने राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से 7 पर महिला उम्मीदवारों को उतारा। इनमें से पांच -प्रमिला बिसोयी (आसका), मंजुलता मंडल (भद्रक ), राजश्री मलिक ( जगतसिंहपुर), शर्मिष्ठा सेठी (जयपुर) और चंद्राणी मुर्मू (क्योंझर ) ने जीत दर्ज की। राज्य से जीती अन्य दो लोकसभा सदस्य- अपराजिता सडांगी (भुवनेश्वर) और संगीता कुमारी सिंहदेव (बलंगिरी) भाजपा की हैं। भाजपा ने छह महिलाओं को

उम्मीदवार बनाया था. राज्य से निर्वाचित इन लोकसभा सदस्यों में प्रमिला बिसोयी को छोड़कर सभी सुशिक्षित भी हैं. इतिहास में पहली बार हुआ जब राज्य से इतनी, करीब 33 फीसद महिलाएं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई. कक्षा-दो से आगे नहीं बढ़ सकी 70 वर्षीय  प्रमिला बिसोयी के पास जटिल जीवन के व्यावहारिक अनुभव है। वो करीब 70 लाख महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ( एसएचजी ) का प्रतिनिधित्व करती हैं.चंद्राणी मुर्मू का उदाहरण अप्रतिम है।उन्होंने 2017 में भुवनेश्वर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की  बीटेक डिग्री हासिल की थी। वह नौकरी ढूंढ रही थी तो बीजेडी ने उन्हें केन्झार लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने की पेशकश की। उनके अपने परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं है। उनके माता-पिता सरकारी नौकरी करते हैं. हाँ, उनके नाना दो बार 1980 और 1984 में कांग्रेस के सांसद रहे थे। वह ननिहाल के जरिये ही राजनीति में आईं। उन्होंने इस सीट पर भाजपा के अनुभवी उम्मीदवार अनंत नायक को करीब 66200 मतों के अंतर से हराया जो क्योंझर से दो बार , 1999 और 2004 में लोकसभा  के लिए चुने गए थे।

 

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी प्रत्याशियों के चयन में महिलाओं को 40 प्रतिशत आरक्षण देने की अपनी घोषणा पर अमल कर राज्य में लोकसभा की 42 में से 17 सीटों पर महिला उम्मीदवार खड़े किये।  इनमें से कई बांग्ला फिल्मों की अदाकारा हैं जिनमें मुनमुन सेन ( आसनसोल ), नुसरत जहां (बसीरहाट ) , मिमी चक्रवर्ती ( जादवपुर ), शताब्दि रॉय ( बीरभूम ) शामिल हैं। पिछली बार जीतने में सफल रही मुनमुन सेन इस बार हार गई. टीएमसी की महुआ मोईत्रा भी कृष्णागर सीट पर जीतने में सफल रहीं जो राजनीति में आने से पहले जेपी मॉर्गन कम्पनी में उपाध्यक्ष थी। उन्हें राहुल गांधी 2008 में राजनीति में लाये थे।  राज्य में इस बार भाजपा के प्रत्याशी के रूप में बांग्ला अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी ने हुगली सीट पर टीएमसी की रत्ना डे को मामूली अंतर से हराया।

भाजपा की निर्वाचित महिला लोकसभा सदस्यों में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सर्वप्रमुख कही जा सकती है जिन्होंने उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर राहुल गांधी को 52 हजार मतों से परास्त कर दिया। वह पहली बार लोकसभा चुनाव जीतीं. उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के खिलाफ लड़ा था जिसमे वह विफल रहीं। 

उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट से 2014 में जीती फिल्म अदाकारा हेमा मालिनी ( भाजपा) 2019 में भी जीत गईं जिन्होंने अपने क्षेत्र की लगभग कोई देखभाल नहीं की थी। उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी)  के कुंवर नरेंद्र सिंह को हराया। उन्होंने फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र  के दूसरे विवाह के लिए धर्म बदल  निकाह किया। दोनों ने निकाह के लिए अपना नाम मुस्लिम किया। हेमा मालिनी के सौतेले पुत्र सनी देओल पंजाब के गुरदासपुर से भाजपा के टिकट पर जीते. गुरदासपुर से भाजपा सांसद रहे दिवंगत फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना की पत्नी कविता भाजपा की और से चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन उन्हें पार्टी टिकट नहीं मिला। धर्मेंद्र ,भाजपा प्रत्याशी के रूप में 2004 में बीकानेर (राजस्थान) से जीते थे। भाजपा की जयाप्रदा मथुरा में  समाजवादी पार्टी के मोहम्मद आज़म खान से जीत गयीं। वह इस सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में 2004 और 2009 में जीती थीं। बाद में उन्होंने सपा से अलग होकर अमर सिंह के साथ अपनी नई पार्टी बनाई और फिर भाजपा की शरण में चली गईं। महाराष्ट्र के मालेगांव में आतंकी बम विस्फोट की वारदात के लिए आरोपित प्रज्ञा ठाकुर भोपाल से जीतने में कामयाब रही। उन्होंने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को तीन लाख मतों से हराया।  दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट पर निवर्तमान सांसद और भोजपुरी फिल्मों के अभनेता मनोज तिवारी ( भाजपा) से हार गईं. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नि परणीत कौर एक अंतराल के बाद फिर पटियाला सीट से जीतने में सफल रहीं. लेकिन दिवंगत फिल्म अभिनेता एवं पूर्व सांसद सुनील दत्त की पुत्री , प्रिया दत्त मुंबई उत्तर मध्य की सीट पर भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की पुत्री एवं निवर्तमान सांसद पूनम महाजन से भारी मतों से फिर हार गई। प्रिया दत्त ने लगातार तीसरी बार वहाँ से चुनाव लड़ा। उन्होंने अपना पहला चुनाव मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से लड़ा था, जहां से उनके पिता सुनील दत्त सांसद थे. 2005 में उनकी मृत्यु के बाद वहाँ उपचुनाव में प्रिया दत्त जीती थी। वह 2009 में मुंबई उत्तर मध्य सीट से जीती थीं लेकिन 2014 में पूनम महाजन से ही हार गई थी।

पूर्व फिल्म अदाकारा उर्मिला मातोंडकर भी मुंबई उत्तर सीट पर भाजपा के गोपाल शेट्टी से हार गईं। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नि एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं हरसिमरत कौर भी भटिंडा से जीत गईं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले भी महाराष्ट्र में अपने गृह जिला की सीट बारामती से जीत गईं। लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पुत्री एवं उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति की प्रत्याशी निज़ामाबाद सीट पर भाजपा के धर्मपुरी अरविन्द से हार गईं।  निज़ामाबाद सीट पर  रिकार्ड 185 उम्मीदवार थे। इस कारण वहाँ इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन के बजाय बेलट पेपर से चुनाव कराना पड़ा।

जम्मू -कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती अनंतनाग सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी से चुनाव हार गईं। यह सीट 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिए इस्तीफा के कारण रिक्त थी जहां उपचुनाव  सुरक्षा कारणों से नहीं कराये गए थे। अनंतनाग, जम्मू कश्मीर की छह लोकसभा सीटों में है जहां 13.6 प्रतिशत ही मतदान हुआ। महबूबा मुफ़्ती के गृह नगर बिजबेहरा में सिर्फ 2 फीसद मतदान हुआ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव  आजमगढ़ से जीत गए लेकिन उनकी पत्नी एवं कन्नौज से निवर्तमान सांसद डिम्पल यादव हार गईं. फिल्म अभिनेता एवं निवर्तमान भाजपा सांसद शत्रुघन सिन्हा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पटना साहिब सीट से तत्कालीन केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद से हारे और उनकी पत्नी पूनम सिन्हा ( सपा ) भी लखनऊ सीट पर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह से हार गईं। पूनम सिन्हा ने जोधा अकबर समेत कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया है। आंध्र प्रदेश में एक आदिवासी स्कूल में शिक्षक रही गोदत्ति देमूडू भी 26 वर्ष की आयु में वायएसआर कांग्रेस पार्टी की टिकट पर जीत गईं। उनके पिता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दो बार विधायक चुने गए थे।

 

बहरहाल, देखना है नए चुनाव में नवनिर्वाचित नई महिला जनप्रतिनिधि विधायिका और उसके बाहर राजनीतिक-सामाजिक जीवन में कितना बेहतर प्रदर्शन करती हैं. गौरतलब है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ' क्राइम इन इंडिया ' रिपोर्ट 2019 के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दर्ज किए गए हैं। 2019 में यूपी में ऐसे 3,065 मामले दर्ज हुए।

 

 

   मीडिया और सियासी हल्कों में सीपी नाम से परिचित पत्रकार, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया समाचार एजेंसी के मुंबई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से रिटायर होने पर पिछले चार बरस से बिहार के अपने गाँव में खेती-बाड़ी और स्कूल चलाने के अलावा हिन्दी अंग्रेजी में नियमित लेखन कर रहे हैं।मेल संपर्क cpjha@yahoo.com