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Monday, August 6, 2018

जेएनयू आख्यान

फुटनोट्स : 01
जेएनयू , हिन्दुस्तान के एक बड़े आख्यान का सर्वनाम बन चुका है. पहले सिर्फ सोचा था कि ' पानीपत की चौथी लड़ाई ' जेएनयू से शुरू हो चुकी है , आगे जहाँ तक पहुंचे .आज शाम जेएनयू में कॉमरेड कन्हैया कुमार के 50 मिनट के भाषण को सुन विश्वास हो गया कि लड़ाई हिन्दुस्तान की है। जेएनयू , कन्हैया और पानीपत भी उस दीर्घलंबित लड़ाई के सर्वनाम हैं. ये लड़ाई बहुत लम्बी चलेगी। महाभारत की 18 दिन चली लड़ाई विगत है , भविष्य नहीं. लड़ाई दिन , महीने और शायद वर्षों तक नहीं निपटेगी . तय है कि नहीं लड़े तो हार निश्चित है , लड़े तो जीत भी सकते हैं.

अंधभक्त डर गए है. उनके आराध्य का डर चकनाचूर हो रहा है। वे बिलबिला रहे हैं - आयं , बायं , शांय , ठायं कन्हैया पर।

 ' कन्हैया आला रे आला ' , कन्हैया के जेल से बाहर आते ही जेएनयू में पढ़ा एक प्रोफ़ेसर फेसबुक पर चीत्कार करने लगा. फिर फुसफुसाया ,    " सुना है जेएनयू में डिस्को चल रहा है जीत के जश्न का." 

कन्हैया की तो बात ही कुछ और है। अंधभक्तों को कभी कुछ भी पढ़ते देखा नहीं है। उन्हें भारत का क्या अपने आराध्य तक का इतिहास बोध नहीं है. वे क्या जाने देशभक्ति , सैन्यवाद नहीं है। दिल्ली पुलिस , कन्हैया के खिलाफ एक भी सबूत नहीं जुटा सकी। 

गृह मंत्री ने पाकिस्तानी आतंकी सरगना के फर्जी ट्वीट का हवाला दिया था। फिर उन्होंने कहा कि इंटेलिजेंस रिपोर्ट है। फिर कहा कि उन्हें कुछ नहीं कहना है. अवाम के कठघरे में सरकार और दिल्ली पुलिस है। वो डरे हुए है। क्योंकि उनका डर काफूर हो रहा है। बब्बन खान ने प्याज के छिलके , अदरक के पंजे जैसे व्यंग नाटक लिखे। उनका मंचन भी हुआ है. कोई ' सड़े अंडे के पावँ " लिख डाले। मंचन पूरा इंडिया कर लेगा।

जज लोग अदालती फैसलों में अदब की दुनिया के गीत , संगीत , कवि , कविता , शेर , शायर का हवाला ना देतें हों ये गलतफहमी होगी। दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस प्रतिभा रानी जी ने कॉमरेड कन्हैया कुमार की जमानत याचिका पर एक फिल्मी गीत का विस्तृत ' साइटेशन ' तो दिया। लेकिन वह भयंकर भूल कर बैंठीं हैं कि वो गीत इन्दीवर का है। अदालती ठप्पे झुटला नहीं सकते कि वो गीत दिवंगत गुलशन बावरा का है। इसके पहले भी इन्हीं जज महोदया ने ' निर्भया ' मामले में अपने निर्णय में जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य , कामायनी के हवाले से जब ये कहा , ' नारी तुम केवल श्रधा हो .. ' तो कुछ हज़म नहीं हुआ. जेएनयू के बन्दे , जज महोदया के हर आर्डर को खंगालने में लग गए है. क्या पता उन्होंने अपने आर्डर में कीर्तन -भजन भी नत्थी कर दिए हों। बहरहाल , उन्हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश , जस्टिस मार्कण्डेय काटजू से अदब की दुनिया की कुछ बारीक बातें सीखनी चाहिए. जस्टिस काटजू ने मुंबई के एक अस्पताल में 43 बरस कोमा में पड़ी नर्स , अरुणा शानबाग की ईक्षा मृत्यु की याचिका को नामंजूर करने के बावजूद अपने निर्णय में मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर उद्धृत किया था। वह था , " जीते हैं आरजू में मौत की , मौत आती है मगर नहीं आती। अरुणा तो बाद में गुजर गयीं। बोल नहीं सकती थीं। गर बोलती तो यहीं बोलती , ' सलाम मिर्ज़ा ग़ालिब। सलाम जस्टिस काटजू। सलाम अदब की दुनिया '.
सैल्यूट शेहला। इस यंग लेडी ने बरास्ते जेएनयू कश्नीर को हिन्दुस्तान भर में फ़ैल रहे छात्र आंदोलन से जोड़ दिया है। और इसलिए कश्मीर में बीजेपी की साँझा सरकार बनी बनी . भक्तों का विलाप था कि वह मैनेजमेंट का अच्छा करियर छोड़ जेएनयू पढ़ने क्यों पहुँच गयी। वे जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष शेहला को लाख चाहने पर भी घेर नहीं सके. उनका ये भी विलाप था कि कन्हैया आदि संग शेहला को भी राष्ट्रद्रोह आरोप में गिरफ्तार करना चाहिए था. वह बच कैसे गयी । उपरोक्त बात की व्याख्या कंही अंग्रेजी में पढ़ी थी। हाय रे भक्त- भक्तिन , हाय तेरा विलाप , सैल्यूट शेहला , सैल्यूट जेएनयू। अंधभक्तों से आज़ादी। रेनबो सलाम बोलिए। वक़्त और विचारधारा का भी तकाजा है। हर रंग समेटने का है।

फक्र है जेएनयू की नयी पीढ़ी पर , जिसने पुरानी पीढ़ी के प्रतिरोध की आवाज़ को और आगे बढ़ाया है। नजीब का सवाल जेएनयू से , जेएनयू का सवाल कन्हैया से , कन्हैया का सवाल रोहित वेमुला से , रोहित का सवाल अख़लाक़ से , बीफ का सवाल भारत के संविधान से , संविधान का सवाल नोटबंदी से , हमारे -आपके सारे सवाल जुड़े है। जवाब कोई नहीं हमारे निज़ाम से। कोई शक ? 

कन्हैया , अनिर्बान और उमर खालिद , तीनों पर दिल्ली पुलिस ने सेडिशन के आरोप चस्पां किये थे। लेकिन पुलिस अदालत में चार्ज शीट दाखिल तक नहीं कर सकी। तीनों ने स्टडी एन्ड स्ट्रगल के मन्त्र को आत्मसात कर हाल में अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली। नोट कर लो और लड़ो हर सवाल पर जवाब के लिए. फिलवक्त सबसे ज्यादा नोटबंदी पर रहे तो बेहतर। बको ध्यानं।

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