बरस : 2021
माह : दिसंबर
बुधवार 29 दिसंबर 2021
प्रश्न प्रदेश यूपी में डर महामारी से है या चुनावों से ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ( फाइल फोटो )
चंद्र प्रकाश झा
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक
नए चुनावों के लिए सियासी पार्टियाँ कुछ
नई और कुछ पुराने मॉडल की चुनावी जोड़-तोड़ में लग गई हैं। चुनाव लड़ाकों के लिए निर्वाचन आयोग हरी
झंडी मिलने के
पहले ही सियासी शतरंज की बिसात पर बचाव की किलाबंदी के लिए प्यादों की कुछ
चालें
चलीं जा चुकी है। ओपनिंग मूव में सत्ता पक्ष और
विपक्ष के हाथी, ऊंट और घोड़ों की भी कुछ चालें बिसात पर डाली जा
चुकी थी। तय करना था है कि महामारी के डर से बाजी बीच में ही छोड़ दें या नई बिसात पर
नई बाजी की जुगत के लिए ठंढ के दिन कुछ खतम होने तक इंतजार
करें। स्थिति उत्तर प्रदेश (यूपी) समेत उन सभी सूबों में कमोबेश यही थी जहां नई
विधान सभा के गठन की सांविधिक दरकार पूरी करने निर्वाचन आयोग को 2022 में चुनाव कराने
हैं। बताया जाता है तीनों चुनाव आयुक्तों ने अपने अफसरों के साथ यूपी की राजधानी लखनऊ
के दौरा के पहले ही दिन मंगलवार को निष्कर्ष निकाला कि चुनाव टालना टेढ़ी खीर है।
आधिकारिक रूप से कोई घोषणा नहीं हुई है।
लेकिन देर शाम संकेत मिल गए कि चुनाव नहीं टाले
जा सकते है। समझा जाता है कि अंतिम तौर पर कोई फैसला दिल्ली में निर्वाचन आयोग
की पूर्ण बैठक में लिया जाएगा। ये बैठक अगले सप्ताह हो सकती है जब वोटर लिस्ट का
नवीनीकरण एक जनवरी 2022 के हिसाब से पूरा कर प्रकाशित कर लिया जाएगा।
लखनऊ में सियासी दलों के प्रतिनिधियों ने चुनाव आयुक्त
से भेंट कर प्रदेश में समय पर निष्पक्ष
चुनाव कराने की मांग की है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव की समाजवादी
पार्टी ( सपा) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी
( भाजपा) के नेताओं की जनसभाओं में सरकारी मशीनरी और धन के दुरुपयोग पर रोक
लगाने की मांग की। भाजपा ने पोलिंग बूथों पर महिला सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की
मांग की । कांग्रेस ने अपर मुख्य सचिव (गृह
) अवनीश कुमार अवस्थी को हटाने की मांग की है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती
की बहुजन समाज पार्टी ( बसपा )ने चुनाव में धर्म के इस्तेमाल पर रोक
लगाने की मांग रखी। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के प्रपौत्र जयंत
चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल ने आयोग से संवैधानिक पद पर बैठे लोगों
द्वारा संविधान के खिलाफ भाषण पर रोक लगाने की गुजारिश की। समाजवादी पार्टी के प्रदेश
अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने आदर्श चुनाव आचार संहिता का सख्त पालन कराने की
मांग कर कहा चुनाव आयोग 80 साल से अधिक उम्र के जिन बुजुर्गों और दिव्यांगों को
पोस्टल बैलेट के माध्यम से वोट देने की व्यवस्था कर रहा है उनकी सूची प्रकाशित की जाए।
साथ ही अगर किसी प्रत्याशी द्वारा वोट की गिनती ईवीएम के अलावा उसके साथ लगे वीवीपैट
मशीन से भी कराने की मांग होती है तो 50 फीसद वोट की गणना वीवीपैट से कराई जाए।
छत्तीसगढ़
के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल कर मंगलवार को रायपुर में दावा किया भाजपा यूपी
चुनाव टालने के लिए षडयंत्र कर रही है। उन्होंने कहा अभी ओमिक्रोन के इक्का दुक्का
मामले हैं फिर भी योगी सरकार घबराई हुई हैं. जब आयोग प्रमुख को प्रधानमंत्री
कार्यालय से मीटिंग के लिए बुलाया जाए और वह मीटिंग में शामिल हो तब फिर उसकी
स्वतंत्रता पर प्रश्न उठेगा ही।
बाहरहाल , आयोग को शायद समझ में आ
गया कि कोरोना कोविड एमीक्रॉन जैसी महामारियाँ चुनावों से फैलती हैं लेकिन खतम नहीं होने वाली है। ये नई सहस्त्राब्दी की
वैश्विक वास्तविकता है। वास्तविकता का दूसरा पालू ये भी है कि महामारी के कहर के दौरान
किसी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में कोई भी चुनाब स्वतंत्र,
निष्पक्श और भयमुक्त नहीं हो सकता।
राष्ट्रपति शासन
एक विकल्प था कि केंद्र सरकार चुनाव
टालने यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है जिसपर तत्काल या कुछ बाद
में संसद
का अनुमोदन हासिल करना होगा। ऐसे में राष्ट्रपति शासन
की अवधि छह माह की तय होती है। मगर केंद्र सरकार, राष्ट्रपति शासन एक ही क्षण में
खत्म कर उसे नए सिरे से फिर लागू कर सकती है। एक बार ऐसा यूपी में ही हो चुका है
जब 1996 के विधानसभा चुनाव में किसी पक्ष को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से नई सरकार
नहीं बन पाने की स्थिति में वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। छह माह की अवधि
बीतने पर भी जब नई सरकार नहीं बन सकी तो एक ही झटके में राष्ट्रपति शासन खत्म कर
उसे तत्क्षण नए सिरे से फिर लागू भी कर दिया गया।
ये सब हिन्दुस्तानी लोकतंत्र की
विसंगतियाँ है। भारत के संविधान के गंभीर अध्येताओं के मुताबिक उसके हर प्रावधान
की काट उसी में छुपी हुई है जिसको हमारे हुक्मरानों को अपनी सुविधानुसार सिर्फ
खोलना पड़ता है। जम्मू कश्मीर इसका ज्वलंत उदाहरण है जहां कई बरसों से चुनाव नहीं
कराये गए है।
यूपी की हालत गजब है। 13 अप्रैल 2021 को 24 वे
मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने सुशील चंन्द्रा भारतीय राजस्व सेवा के 1980 बैच
के हैं और उत्तर प्रदेश के ही हैं. आयोग के एक सितंबर 2020 से आयुक्त राजीव
कुमार भी उत्तर प्रदेश के ही हैं. वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1984 बैच के
हैं और झारखंड कैडर के अधिकारी रहे हैं. तीसरे चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे
भी यूपी के ही हैं। उन्हें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) के रूप में सुनील
अरोड़ा का कार्यकाल 12 अप्रैल को पूरा हो जाने से रिक्त पद पर नौ जून को
नियुक्त किया गया था। वह 1984 बैच के रिटायर आईएएस अफसर हैं। स्वतंत्र भारत के
इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ जब तीनों चुनाव आयुक्त एक ही राज्य के हो।
दरअसल , अयोध्या में राम मंदिर निर्माण
में गति आने की खबरों और इसी माह वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये उद्घाटन से यूपी में साम्प्रदाईक ध्रुवीकरण
बढ़ाने की मंशा ज्यादा कारगर नहीं होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)
समर्थक भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों के इशारे पर हरिद्वार (उत्तराखंड) की हालिया की तथाकथित
धर्म-संसद में मुस्लिम जनसंहार करने के खुले आम
नारे लगाकर भड़काऊ भाषण दिए गए। इसके लिए उनके खिलाफ भाजपा सरकार द्वारा
कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसी ही बात छतीसगढ़ के रायपुर में बुलाई कथित
धर्म
संसद में होने पर वहाँ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। फिर
भी साम्प्रदाईक
ध्रुवीकरण नहीं बढ़ने पर मोदी और योगी राज के हाथ पैर फूलने
लगे क्योंकि खुफिया रिपोर्ट मिलने लगी कि इस बार यूपी के चुनाव में उनकी दाल नहीं
गलने वाली है। विकास के नाम पर 17,000 करोड़ रुपये लागत
से इलाहाबाद
से मेरठ तक
594 किलोमीटर लंबी प्रस्तावित सड़क, उस गंगाएक्सप्रेस वे के निर्माण आरंभ होने का भी
वोटरों पर खास असर नहीं पड़ा जिसका ठेका मोदी जी के चहेते लंपट पूंजीपति ( क्रोनी
कैपिटलिस्ट ) गौतम अडानी की कंपनी को दे दिया गया है।
ऐसे में संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्षी दलों के गतिरोध के बीच लोकसभा में
विधि एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने चुनाव सुधार बिल पेश कर पास
भी करा लिया गया। ऐन चुनाव की घड़ी वोटर कार्ड को आधार कार्ड से
जोड़ने के चुनाव सुधार संशोधन कानून एक और नई चाल है। सुप्रीम
कोर्ट ने आधार को वोटर कार्ड से जोड़ने पर रोक लगाने के
2015 के अपने फैसले
को 2018 में कायम रखा था। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश
की
सरकारों ने इस आदेश का उल्लंघन कर 2018 में आधार को वोटर आईडी से लिंक कर दिया।
इस पर 55
लाख वोटरों के नाम मतदाता सूची से अचानक गायब हो गये और वे मताधिकार से वंचित कर
दिए गए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट
इस बीच , देश में कोरोना के ओमिक्रोन वैरियंट के
बढ़ते मामलों के बीच मद्देनजर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर
कुमार यादव ने 24 दिसंबर को एक जमानत याचिका पर
सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पनी में प्रधानमंत्री मोदी और निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया कि वे
जनता को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने पार्टियों
की चुनावी सभाएं और रैलियों को रोकने कड़े कदम उठाएं। साथ ही चुनाव टालने पर भी
विचार करें, क्योंकि जान है तो जहान है। इसी
बरस गर्मी में पांच
राज्यों में विधानसभा चुनावों में मोदी जी समेत सभी सियासी नेताओं की रैलियों के
दौरान कोरोना
की दूसरी लहर ने क़हर बरपाया था। उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव ( स्वास्थ्य ) अमित
मोहन प्रसाद के मुताबिक प्रदेश में कोरोना के सक्रिय मामले बढ़कर 236 हो गए
हैं।
हमने 20 अप्रैल 2021 के अंक के चुनाव चर्चा कॉलम
मे “ महामारी
माहौल में चुनाव बहार के मायने “ शीर्षक से लिखा था कि भारत में बरस भर से कोरोना-कोविड
महामारी का कहर हरिद्वार कुम्भ मेला में करोड भर
लोगो
के गंगा स्नान के धार्मिक पुण्य से नहीं थमा नहीं
उलटे पूरे
देश में बेतहासा बढ गया.निर्वाचन आयोग इस से बेखबर नहीं रहा
और इसलिए उसने बंगाल
विधान सभा चुनाव के 8 चरण में तीन की वोटिंग पूरी होने के बाद
शेष
मतदान के ऐन पहले सभी संसदीय सियासी दलो की बैठक भी बुलाई. आयोग
ने शेष
तीनो चरण की वोटिंग एकसाथ कराने का विपक्षी दलो का सांझा
सुझाव नामंजूर कर दिया. आयोग ने भाजपा के सुर में सुर मिलाकर चुनाव का पूर्व घोषित कार्यक्रम यथावत रखा
।
2022 के चुनाव
अरोडा
जी ने रिटायर होने से पह्ले गोआ, मणिपुर , पंजाब , उत्तराखंड
और उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यो के 20222 के
चुनाव
के समय का कैलेंडर नये मुख्य निर्वाचन आयुक्त के
लिए उनकी टेबल
पर छोड दिया था। इस कैलेंडर के मुताबिक गोआ की मौजूदा विधानसभा 16 मार्च 2017
को गठित हुई थी और उसका कार्यकाल 15 मार्च को खतम होगा. अन्य
में
से मणिपुर का 19 मार्च को , पंजाब का 27 मार्च को , उत्तराखंड का 23 मार्च को और उत्तर प्रदेश विधान सभा का कार्यकाल 14
मई तक है.
बहरहाल , इन तारीखों तक नए चुनाव के जरिए उनकी
नई विधानसभा का गठन करने की सांविधिक दरकार है। और
अगर तब तक नई विधान सभा नहीं गठित की जा सकी तो केंद्र की मोदी सरकार के पास
एकमात्र उपलब्ध विकल्प ये होगा कि भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत
राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए। राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राज्य का राजकाज प्रत्यक्ष
रूप से केंद्र सरकार के अधीन आ जाता है। पर यूपी की मौजूदा स्थिति में यह विकल्प
तभी आजमाया जा सकता है जब उस राज्य का राज्यपाल प्रदेश में संवैधानिक तन्त्र की
विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन होने की रिपोर्ट दे । राष्ट्रपति शासन एक बार
में छह- छह माह की अवधि के लिए अधिकतम तीन बरस तक बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश
में अभी गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन राज्यपाल हैं जो मोदी जी की
बहुत करीबी मानी जाती हैं और वहाँ विगत में मोदी जी की सरकार में भी मंत्री रही
थी।
बड़ा सवाल है कि क्या चुनाव वाले सभी
राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना होगा ? उससे भी बड़ा सवाल ये है क्या तब मान
लिया जाएगा कि यूपी में योगी सरकार संवैधानिक रूप से विफल हो गई है? दरअसल , उत्तर
प्रदेश का फिलहाल कोई उत्तर नहीं नजर आता है। ये प्रश्न प्रदेश बन गया है। देखना
है कि निर्वाचन आयोग ही नहीं मोदी सरकार भी इस प्रश्न प्रदेश में चुनाव कराने या
नहीं कराने के लिए आगे क्या करती है।
लिंक
Extra
नीचे का लिंक विज़िट कर 2021 मई का डिस्पैच भी पढ़ें तो मेहरबानी।
चुनाव चर्चा: पंचायत चुनाव ने गंगा को शववाहिनी बनाया पर चुनाव वाहिनी विधानसभा चुनाव को तैयार!
चन्द्रप्रकाश झा
कॉलम
Published On : Tue 18th May 2021, 09:05 PM https://www.mediavigil.com/op-ed/column/thousand-of-teachers-died-in-up-panchayat-elections-but-bjp-eyes-on-asssembly-polls/
No comments:
Post a Comment