सुचिंतन -कुचिंतन
कोई लेखन कालजयी नहीं होता
एक शाम हम कुछ पत्रकार और लेखक मित्र लेखन पर चर्चा करने लगे. वो शाम कुछ हट कर थी और वो सभी मित्र भी. विगत लेखन , समकालीन लेखन , आगत लेखन, दलित लेखन , महिला लेखन , अवयस्क लेखन , वयस्क लेखन , कालजयी लेखन और अन्य कई पदबंधों से लेखन की व्याख्या होने लगी.
चर्चा उठी कि कोई कालजयी लेखन नहीं होता. रामायण भी कालजयी नहीं. इसके कई स्वरुप और कई व्याख्याएं हैं -बाल्मिकी रामायण , तुलसी रामायण , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की रामायण और रामानंद सागर की रामायण से लेकर दलित संत पेरियार ई वी रामास्वामी की 'सच्ची रामायण ' तक.
एक मित्र ने कहा कोई भी लेखन पाठकों के लिए अंतिम तौर पर कभी नहीं " खुलता " . लेखक को तो कत्तई ये अधिकार नहीं कि वह अपने किसी भी लेखन को अंतिम तौर पर खुल जाने की मुनादी करे.
वो चर्चा वहीँ स्थगित रह गई. अभी ना सही फिर कभी , कंही ना कहीं और चलनी चाहिए , बढ़नी चाहिए। ।
भविष्य में और भी रामायण लेखन हो सकते हैं. हर तरह के उपलब्ध रामायण का अपने वक़्त से टकराव संभव है. नया वक़्त , नए रामायण के लेखन की मांग कर सकता है. रामायण के स्वरुप जो भी हों , जितने भी हों - अहम उनके लेखक नहीं होंगे , अहम उनके लेखन की समय -पार कर चुकी आवश्यकता और इसकी पूर्ती के लिए आगे आने वाले लेखक का समय होगा. समय नहीं ठहरता . किसी भी एक रामायण के ठहरने के सामर्थ्य में संशय स्वाभाविक है.
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