Search This Blog

Monday, November 9, 2015

हाशिये के किस्से 


एक पोल्स्टर का विलक्षण विश्लेषण


वह अभूतपूर्व ' पोल्स्टर ' हैं. चुनावी ज्योतिषाचार्य कह सकते है. पर हम उन्हें ' नाती जी देशमुख ' कहने लगे थे .चुनावी आंकड़ों का ' गार्बेज इन , गार्बेज आउट ' के सिद्धांत पर चुटकी बजा कर भारी -भरकम कम्प्यूटरी विश्लेषण करने में उनका कोई जवाब नही.

उन्होंने दिवंगत राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत में कम्प्यूटरीकरण का आगाज़ होते देख कर ही समझ लिया था कि अपने नाना की तरह प्रचारक बनने के लिए  सुखमय जीवन का परित्याग क्यों करे.  सो उन्होंने भारत में सीफोलोजी के नए उगे धंधे में ही हाथ आज़माने की ठान ली. इस धंधे से उन्हें " हींग लगे ना फिटकरी , रंग चोखा होय " की पुरानी भारतीय कहावत को लोकतांत्रिक चुनाव में चरितार्थ कर दिखाने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया. इस धंधे से कितनी अधिक कमाई की जा सकती है इसका उन्हें पूर्वानुमान तो रहा ही होगा.

उन्हें भारतीय समाज में जातीय प्रक्रियायों को लेकर प्रसिद्धः समाजशास्त्री एम.एन.श्रीनिवास की ' थ्योरी ऑफ़ सांस्कृताईज़ेशन ' को पढ़ने -समझने की कभी कोई जरुरत नहीं पड़ी. वह कम्प्यूटर पर सवार होकर फर्राटा लगा सकते हैं. ब्राह्मणावादी समाज में गैर -द्विज से द्विज के सोपान तक पहुँचने में द्विज के रीति -रिवाज़ , वेश -भूषा जनेऊ आदि को साजशास्त्रीय रूप से अपनाने में युग बीत जाता है और फिर भी हर गैर -द्विज को द्विज की ब्राह्मणवादी मान्यता नहीं मिल पाती.लेकिन ये अभूतपूर्व पोल्स्टर महोदय अपने गार्बेज इन , गार्बेज आउट कम्प्यूटरी विश्लेषण से पिछड़े , शूद्र , किसी भी गैर -द्विज को दर्ज़ा प्रदान कर सकते है , कोई माने या ना माने. .

ये किस्सा उन्ही पोल्स्टर का है जो हमने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विविध्यालय की पत्रिका के आग्रह पर लिखे एक लम्बे पुराने आलेख से निकाला है. हमारे पास पत्रिका के उस अंक की प्रति नहीं है।  पर तब उस पत्रिका की देखभाल करने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी जी को फैक्स से प्रेषित हस्तलिखित आलेख की मूल प्रति सुरक्षित है जिसका शीर्षक था , " ख़बरों की दुनिया में चुनाव ".

हुआ यूं कि  हमारी न्यूज़ एजेंसी यूएनआई ने उत्तर प्रदेश चुनाव में चुनावी आंकड़ों का कम्प्यूटरी विश्लेषण करने का ठेका इन पोल्स्टर महोदय की कम्पनी को दे दिया. तब हम लखनऊ में ही तैनात थे और जब वह अपने लाव -लश्कर  संग विश्लेषण के लिए हमारे दफ्तर पधारे तो पहली बार उनके श्रीमुख और चुनावी विश्लेषण करने की विलक्षण पद्धिति के साक्षात दर्शन हुए.

हम चुनाव के बारे में निर्वाचन , गृह आदि विभाग से मिली अधिकृत जानकारी और अपने जिला संवाददाताओं से टेलीग्राम , लैंडलाइन फ़ोन , फैक्स आदि से मिली विश्वसनीय सूचनाओं के आधार पर बिन अनुराग -द्वेष के प्रामाणिक समाचार लिख कर अपने ग्राहक अखबारों आदि को अनवरत देते रहते थे.

हम प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के मान्य आचार संहिता के अनुसार चुनावी प्रत्याशियों का ब्रेक अप या और कोई ब्योरा साम्प्रदायिक अथवा जातिगत आधार पर कत्तई नहीं देते थे. हाँ , पाठक मतदाताओं को विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में उनके राजनितिक और अगर कोई आपराधिक इतिहास रहा हो उसकी भी जानकारी देने वाली खबर देना हमारी जिम्मेवारी रही है.

हमें अपने मुख्यालय से पहली बार 1999  के लोकसभा चुनाव में चुनावी ख़बरों में जातिगत आंकड़े भी देने का अनौपचारिक निर्देश मिला.किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न जातियों की संख्या का प्रामाणिक डेटा सहजता से आज भी उपलब्ध नहीं है. जनगणना के आधार पर अनुसूचित जातियो और जनजातियों की संख्या तो दी जा सकती है लेकिन अन्य जातियों और मतदाताओं का सम्प्रदाय -वार देना सहज नही. कई दशक पहले जातिगत आधार पर की गई जनगणना में जनसंख्या वृद्धि की औसत दर को जोड़ कर एक मोटा अनुमान दे पाना ही संभव है. हम ये मोटा अनुमान भी प्रतिशत में लगाते थे और उसका ब्योरा कुछेक अखबारों की भाँति हज़ार , लाख आदि की निशित संख्या में देने से गुरेज़ करते थे.

बहरहाल , उन पोल्स्टर महोदय ने अपने कम्प्यूटर के विलक्षण सॉफ्टवेयर से प्रत्याशियों का जातिगत विश्लेषण करने की तरकीब ईजाद कर ली. उन्होंने प्रत्याशियों के उपनाम के आधार पर उनका जातीय विश्लेषण कर रिपोर्ट फाइल करने के लिए हमें जो आंकड़े थमाए उसे सरसरी तौर पर देखते ही मेरे होश ठिकाने आ गए.

मैंने अपने ब्यूरो चीफ से कहा ," ये काम मुझसे नहीं होगा " . उन्होंने पूछा , " क्यों , आपको तो चुनावी खबर देने में महारत हासिल है। दिल्ली से लेकर पंजाब , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , राजस्थान ,बिहार और अब यूपी से भी चुनाव की खबरें हिंदी -अंग्रेजी में देते रहे है. अब क्या हो गया ?

मैंने कहा , " मुझे कुछ नहीं हुआ। इन आंकड़ों में प्रत्याशियों का बहुत कुछ बन -बिगड़ गया है. खुद देख लीजिये इन आंकड़ों को।  अगर आपको लगता है कि हम ऐसे कम्प्यूटर विश्लेषण से बाँकी गैर -द्विज प्रत्याशियों ही नहीं इस सूबे के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल उनकी लोध जाति से बाहर खींच ' ठाकुर '  बना सकते है तो बना दीजिये।  पर मुझसे ये पुण्य कार्य नहीं होगा '.

उन्होंने कहा , " कल्याण सिंह तो ठीक. सब जानते है. आपने बाँकी प्रत्याशियों को कैसे पकड़ा. मैंने कहा , " सामान्य ज्ञान से.  ' सिंह ' उपनाम धारी सभी प्रत्याशी ठाकुर ही हों कोई जरुरी नहीं.पर इन पोल्स्टर महोदय ने प्रत्याशियों की मुझ से ली अधिकृत सूची को अपने कम्प्यूटर में भर उनमें सिंह उपनाम धारी सभी प्रत्याशियों को द्विज बना दिया.  अगर हमने इनकी सेवा बिहार में ली तो वह वहाँ अपने विलक्षण विश्लेषण से बिहार के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर और भी आसानी से द्विज बनाये नहीं छोड़ेंगे. हमारे ब्यूरो चीफ ने हमारी बात मान उन पोल्स्टर महोदय के वह कूड़ा विश्लेषण कूड़ेदान में फ़ेंक दिया.

 उस दिन से हमारा उन पोल्स्टर महोदय से पंगा शुरू हो गया जिसके और किस्से फिर कभी. हाँ , बहुत दिन नहीं गुजरे जब ' गुलेल ' ने अपने स्टिंग ऑपेरशन से कुछेक अन्य समेत अन्य पोल्स्टर की भी पोल खोली थी. ये पोल खुलने बाद ' टाइम्स नाउ ' न्यूज़ चैनल ने इन पोल्स्टर महोदय को चुनावी विश्लेषण करने का दिया ठेका वापस ले लिया. पर इस बार के बिहार चुनाव में वे पोल्स्टर महोदय ' टाइम्स नाउ ' ही नहीं इंडिया टीवी के लिए भी अपना धंधा करने में कामयाब रहे. उनकी कम्पनी का नाम ए , बी , सी वोटर कुछ भी हो क्या फर्क पड़ता है.  हिन्दुस्तान के वोटर वोट डालने के अपने अधिकार का अर्थ निकालने का ठेका इन पोल्स्टरों को कभी नहीं देंगे.

No comments: