प्रतिकविता
कठघरे में वादी
अदलात की इजलास लगी फिर
भोजनावकाश बाद
आसन ग्रहण कर न्यायाधीश ने हुकुम दिया
वादी कटघरे में हाज़िर हो
खड़ा ही था वादी
हुकुम सुनने
खड़ा-खड़ा पहुँच गया
काठ के कटघरे में
न्यायाधीश बोले
भगवान की सौगंध लो ...
वादी ने आहिस्ते से टोका
सौगंध नहीं , शपथ लूंगा
न्यायाधीश ने पूछा, क्यों
फर्क है क्या सौगंध -शपथ में
वादी ने विनीत स्वर में कहा
शपथ सहज -सरल शब्द है
कोई भी चाहे
ले सकता है
सौगन्ध पुंसवादी शब्द है
महिलाओं के लिए गढ़ा हुआ
ये निष्कर्श है
भाषाशास्त्रीय शोध का
न्यायाधीश बोले
ठीक है , ठीक है
शपथ लो अब
भगवान की
वादी ने याचना की
भगवान की शपथ नहीं ले सकता
न्यायाधीश ने जूंझला कर पूछा
भगवान को नहीं मानते क्या
वादी ने कठघरे में
खड़े -खड़े ही
कह दिया
भगवान नहीं ,सत्य मानता हूँ
न्यायाधीश जोर से बोले
ठीक है , ठीक है
सत्य की ही सही
ले लो, ले लो
कुछ और बोलने से पहले
वादी ने कहा
ठीक है ,ठीक है
शपथ लेता हूँ
सत्य की
कठघरे में
आप बताएं पहले
आसन पर विराजे
सत्य नहीं मानते क्या
न्यायाधीश चिढ -से गए
बोले , कठघरे में खड़े हो
जो पूछा जाए
वही बोलो
सवाल नहीं कर सकते
कठघरे में खड़े खड़े
वादी ने दृढ़ता से कहा
कोई सवाल नहीं कठघरे में
पूछिये सवाल , अपने भी
और जिनके भी हों
सवाल ही पूछिये
जवाब हमें देने दें
न्याय का तकाज़ा है
वादी बोलता गया
सत्य यह है
आसन पर आप है
कठघरे में आप नहीं हम हैं
इजलास आपका
आसन भी आपका
कठघरा भी आपका हो
ये सत्य होगा क्या
काला चोगा धारे न्यायाधीश
कठघरे में खड़े वादी से
ये सुनते ही
अपने आसान से खड़े हो गए
उनकी इजलास में
बैठे काले कोट वाले सभी
और सब लोग भी
खड़े हो गए
इजलास मुल्तवी कर
न्यायाधीश चले गए अपने कक्ष
ग्लास भर पानी पीकर
वहीं दोनों पक्षों के
काले कोट वालों को
संग संग बुलाया
उनसे पूछा
कौन है ये वादी
वादी के काले कोट वाले ने कहा
पुरोगामी है
सत्य के लिए कुछ भी कर सकता है
प्रतिवादी काले कोट वाले ने कहा
अधिगामी है
हमारी क्या
किसी की नहीं सुनता
भगवान की भी नहीं
अदालत की भी नही
मी लार्ड , आपकी भी नहीं
बरस -दर-बरस बीते
अदालत की हर तारीख
बिला नागा जाता है वादी
प्रतिवादी नही फिर भी
फिर -फिर खड़ा होने
कठघरे मे #PratiKavita
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