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Thursday, September 10, 2015

किस्सा बिन-कफन दफन किस्सों का


हाशिया के किस्से : 009 

किस्सा बिन-कफन दफन किस्सों का

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    जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय (नई दिल्ली ) के देश -विदेश में पसरे सहपाठियों के एक क्लोज्ड फेसबुक ग्रुप में मैंने कुछेक वर्ष पहले शाम की संगत में अनेक किस्से सुनाये थे. इन किस्सों का  वाचन -श्रवण , हल्की -भारी टीका- टिप्पणी के बीच किश्तों  में चलता था. 

    रियल-ग्रॉस- टाईम में इन किस्सों के वाचन से किंचित वंचित श्रद्धालू सहपाठी भाई और लेडीज़ लोग बाद में उसे पढ़ लेते थे - लाईक ,  ना-लाइक किये बगैर.

    किस्सों के वाचन वक़्त ये अपेक्षा रहती थी कि श्रोतागण बीच-बीच में मुझे टोकते रहे. और कुछ नहीं तो - हाँ , हूँ , अच्छा , ऐसा, वाह , वाह-वाह , फिर क्या हुआ  , आगे तो सुनाओ , वगैरह-वग़ैरह. बीच-बीच में टी , ड्रिंक्स , डिनर ब्रेक भी होते रहते थे. किस्सों के वाचन के दौरान देर रात प्रगट होने वाले विदेशों में पसरे एनआरआई सहपाठियों की खिदमत को अपनी नींद के झोंकों के बावजूद तव्वज्जो देनी पड़ती थी क्योंकि इन किस्सों में सबसे ज्यादा रस वही लेते-देते थे. 
    " बिकौआ वर " जैसे कुछ किस्से  सैंकड़ों कमेंट के दम पर कई दिन चले.  इटली जा बसे भाषाविज्ञानी मित्र शैलजानन्द झा , मरहूम दोस्त खुर्शीद अनवर , स्वीडन बसी हुईं स्वप्ना राय जी , हिन्दू कॉलेज ( दिल्ली ) के प्रोफ़ेसर ईश मिश्र ,  कोलकाता विश्ववद्यालय की प्रोफ़ेसर नीलांजना दास , पीएचडी करने नीदरलैंड गयी शिक्षा सक्सेना समेत कई सहपाठियों का कहना था कि मैं किस्सागोई विधा में नई जान डाल सकता हूँ.
    मिथिला का  " बिकौआ वर " का बचपन में अपनी दादी से सुना संक्षिप्त किस्सा सहपाठियों को सुनाते ऐसा रस- रंग पकड़ने लगा कि मुझे अपनी कल्पना का  बेज़ा इस्तेमाल कर उसे  महाकाव्य- सा   रूप देना  पड़ गया.  उस किस्से का वाचन पूर्ण होने पर नीलांजना जी का मंतव्य दर्ज़ हुआ , " आपकी दादी के किस्से प्रेमचंद सदृश्य हैं , आपके किस्से सलमान रुश्दी की तरह.  

    कॉलेज ज़माने में एक नाटक के गर्ल्स कॉमन रूम में चले ' ऐतिहासिक ' रिहर्सल और उसके मंचन के लिए११ गज़  साड़ी पहनी नायिका को ऐन वक़्त घर से निकलने नहीं दिए जाने के किस्सा को रिकन्सट्रक्ट कर मैंने जब उस ' अनखेले नाटक '  के साक्षी मित्र और अब सर आइजैक न्यूटन के शहर जा बसे मनोचिकित्सक डाक्टर मिथिलेश कुमार झा से सम्पुष्टि मांगी थी तो उन्होंने अपने सन्देश में कहा था , 
    QUOTE " people should try to practice willing suspennsion of disbelief in order to enjoy these kissey which Suman has so eloquantly portrayed.he has remembered with utmost accuracy the entire episode though am not sure about 'naaiyka khoobsoort thee' part.she was desirble yes beautiful afraid not.ek baat aur Suman batana bhool gya hai, rehersal key baad uskey haath kamptey rahtey theay lekin hoton par ek vijai muskan rahtee thee " UNQUOTE 
     तब कभी ये ख़याल आया था कि उस ग्रुप में सुनाये सारे किस्से कभी फुरसत में बटोर कर उन्हें संपादित कर पुस्तक रूप देने की कोशिश करनी चाहिए.  वो हो ना सका. उस ग्रुप में कभी किसी बात पर मचे बवाल को लेकर उसके एडमिन ने कुछेक को छोड़ सबको ग्रुप से निकाल दिया. ग्रुप में सुनाये मेरे सभी किस्से वहीँ बिन कफन दफन हो गए.
     
    किस्सा सुनाने के घंटों में जो  टीका -टिप्पणी होती थी वो किस्सागोई बहाल करने की मेरी हसरत बुलंद करती थी. कई मित्रों के कहने पर मैंने उस ग्रुप में सुनाये कुछ किस्से हाल में अपनी स्मरण शक्ति पर जोर देकर फिर लिखे और फेसबुक पर ही अपनी टाईमलाइन पर पेश भी किये.  ' प्रेस क्लब का दारोगा ' , ' एक था मफलर ' , ' लक्ष्मण के कौव्वे " जैसे कुछ किस्से फिर फेसबुक पर प्रगट होने के बाद  किस्सागोई का वह सिलसिला भी कई कारणों से रूक गया. सबसे बड़ा कारण था कि मुझे श्रद्धालू श्रोता ही नहीं मिले.  
    मित्र  प्रदीप सौरभ दिल्ली से पिछली बार मुम्बई आकर मेरे घर ठहरे तो उन्होंने कहा , " प्रकाशक ऐसे किस्से ढूंढ रहे हैं . कितने किस्से हैं आपके पास ? "  मैंने कहा , "  सौ  हो सकते हैं.  पहले सुनाये सभी किस्सों के सूत्र बटोर कर उन्हें रिकन्सट्रक्ट करने में वक़्त लगेगा. उन्होंने कहा , ' कोई ऐसा किस्सा सुनाओ जो खुले आम नहीं सुनाया हो '. मैंने कहा , "लंच  के बाद बैठते हैं. मेरे डेस्कटॉप कप्यूटर में ऐसा  एक किस्सा सुरक्षित है , " प्रीती जिंटा का प्रेमी कौन ? ". 

  • ये किस्सा मैंने उस क्लोज़्ड जेएनयू ग्रुप में जैसे सुनाया था और मित्रों ने किस्सा सुनाने -सुनने के दौरान जो टीका -टिप्पणी की वह सब संयोग से उनके तब के प्रोफाइल फोटो के साथ , कम्प्यूटर पर कट-पेस्ट का अपना एक विस्तारित प्रयोग करने की वज़ह से ज्यों का त्यों सुरक्षित रह गया था. गड़े मुर्दे खड़ा करना शायद संभव हो सकता है पर उस ग्रुप में दफन अपने सभी किस्सों को  फिर से खड़ा करना आसान नही होगा.
     
    उन्होंने कहा , " चलो , सुनाओ " .  मैं कम्प्यूटर पर बैठ , प्रीती जिंटा  के प्रेमी वाला किस्सा सुनाने लगा . वह बगल में बिस्तर पर अधलेटे सुनने लगे. थोड़ी ही देर बाद वह सो गए. मेरे किस्से फिर खो -से गये , शायद फिर दफ़न हो गये.

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