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Tuesday, July 12, 2016

आज़ादी के किस्से - 01

आज़ादी के किस्से - 01
ब्रिटिश शासकों की गुलामी से भारत की आज़ादी की स्वर्ण जयंती वर्ष में मेरे सम्पादक ने फ़ोन कर कहा , ' हम इस उपलक्ष्य में ख़बरों की नई श्रृंखला शरू कर रहे हैं.  लिखाड़  हो , जेएनयू वाले भी हो , कुछ तो लिखो आगाज़ करने ".

मैंने कहा , " लिख दूंगा , पर शर्त है - कंही आपकी कोई सी भी छोटी -बड़ी कैंची ना चले मेरे लिखे पर ". वो हंस पड़े और प्यार से बोले , " कभी तेरे लिखे में विराम , अर्धविराम तक पे हमने कोई कैंची आज़माई है , तू लिख , कुछ ऐसा लिख आज़ादी के बारे में कि सब बोले तेरे जैसा और कोई नही हम खबर देने वालों की दुनिया में '.

मैंने कहा , सर जी , तनिक धीरज धरो , आप अपनी श्रृंखला शुरू तो करो , ऎसी छोंक लगाऊंगा उसमें कि हम सब छक कर जियेंगे और मरेंगे उस किस्से पर , आज़ादी की कसम "

उन्होंने कहा , " देर ना करना , इसी महीने लिख भेजो " .

मैंने कहा , " इसी दिन तो नहीं , इसी हफ्ते लिख भेज दूंगा।  आयडिया पहले से था इसे लिखने का और दस्तावेज़ भी जुटा रखे हैं , बस आपका आग्रह चाहिए था और वायदा कि उस पर आपकी कैंची चाहे -अनचाहे भी ना चले।  आलेख भेज दूंगा , दस्तावेज़ किताबों में है जो आपको क्या किसी को नहीं दूंगा।  पर आप चाहो तो किताब देख सकते हो मेरे पास आकर

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