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Friday, July 15, 2016

तालिबान के नाम

Poems of Resistance  

 तालिबान के नाम  (ये पहली और आखिरी तुकबंदी ) : खुर्शीद अनवर



दीन - ओ - धरम के तु खुदा

इस सर जमी के अम्बिया

बन्दूक का परचम लिये

नारा उठा इंसाफ का

अल्लाह के जाँ नशीं

उस के ही घर के ये अमीन

बारूद की सौदागरी

इनकी इबादत है यही

लाशों के कारोबार में

खुद के रचे बाजार में

कुर्आन की आयत रचते हैं

लाशों पे उनको लिखते हैं


शैतान सिफअत मनहूस रू

फिर से खड़ा हे रूबरू

इंसान का हाथों में लहू

करता है इससे यह वजू


इनकी इबादतगाह में

राक्षस इमामत करते हैं

सजदों में पेशानी  मगर

मंसूबे  दिल में पलते  हैं

 बारूद के लाइकी सदा

चिंगारियों  की कहकशां

नफरत भरे उपदेशों में

परमाणु की ये मोशिकियाँ

जिन हातों में तालीम के

जाम - ओ – सुबू दरकार थे

इस खाक पर जन्नात बने

रचने  के दावेदार थेr

उन हाथों में बारूद की

बू रच गयी क्यों नागहाँ

ये नौनिहाल - ए - ज़िंदगी

गम हो गये जाने कहाँ

इंसानियत पईन्दा है

इनसान फिर भी जिंदा है

उठने को अब ललकार है

चिंगारी बस दरकार  है

मंसूर फिर से आएगा

फिर अनलहक दुहराएगा

सूली तो होगी हाँ मगर

ज़ालिम का होगा उस पर सर

( मरहूम खुर्शीद अनवर )

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