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Tuesday, July 12, 2016

देश पर संघी फासीवाद का खतरा है

पुनरावलोकन :

 देश पर संघी फासीवाद का खतरा है
(संडे मेल , नई दिल्ली  , 16 मई 1993 में ' खुली बहस ' का प्रथम अालेख )




एक बात साफ है कि अारएसएस कोई सांस्कृतिक संगठन नहीं है. उसके उदेश्य राजनीतिक हैं. अयोध्या मामले को गौर से  देखने पर पता चल  जाता है कि अारएसएस ने खुद भी अपने राजनीतिक उदेश्य काफी हद तक सबके सामने रख दिए हैं. यह उदेश्य है हिंदुस्तान को ' हिन्दू राष्ट्र ' बनाना। पर  ' हिन्दू ' और ' राष्ट्र ' का उसका  वह मतलब नही है जो अाम लाग समझते है.

अारएसएस की स्थापना 1925 में ' डॉक्टर जी ' ( के. बी. हेडगेवार ) ने की थी।  पर उसे वैचारिक एवं संगठनिक अाधार ' गुरु जी ' ( एम एस गोलवलकर ) ने प्रदान किया. गुरु जी की एक पुस्तक है ' वी एंड आवर नेशनहुड डिफाइंड ' जो पहली बार 1939 में छपी थी. कुछ लोग़ इसे अारएसएस का बाइबिल  कहते हैं. इस पुस्तक से और अारएसएस के पिछले 68 वर्ष की गतिविधियों पर गौर  करने से स्पष्ट हो जाता है कि उसके लिए ' हिन्दू ' का मतलब ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था अऊर ' राष्ट्र ' का मतलब ' हिटलरी फासीवाद का हिन्दुस्तानी स्वरूप है.

अारएसएस की स्थापना महाराष्ट्र में ब्राह्मणवाद  के खिलाफ सशक्त अांदोलनों की प्रतिक्रिया में सवर्ण जातियों द्वारा हिन्दू के नाम पर  अपना प्रभुत्व बहाल करने के लिए की गई थी।  ये अांदोलन 1870  दशक में ज्योतिबा फुले के नेतृत्व में ' पिछड़ी ' जातियों ने और 1920 के दशक में डा. भीमराव अाम्बेडकर की अगुवाई में दलितों ने छेड़े थे. ये महज संयोग नही कि अारएसएस के अब तक के सभी प्रमुख महाराष्ट्र के ब्राह्मण रहे है ( बाद में 1994 में एक गैर ब्राह्मण लेकिन सवर्ण ही ( ठाकुर / क्षत्रीय) राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया अारएसएस के चौथे प्रमुख बने जो उत्तर प्रदेश के थे. )

अारएसएस  के वैचारिक अाधारों पार् अॉर बात करने से पहले उसके सांगठनिक तंत्र को समझ लेना अच्छा रहेगा।  अारएसएस के ' अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख ' कौशल किशोर की "  प्रेरणा " से 1992  में " लक्ष्य एक कार्य अनेक ' नाम की एक एक पुस्तक छपी।  इस  अनुसार अारएसएस   नियंत्रण में  भारतीय स्तर के 25 अॉर प्रांतीय स्तर के 35 संगठन हैं. इनमें भारतीय जनता पार्टी , विश्व हिन्दू परिषद , भारतीय मजदूर संघ , अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अॉर विद्या भारती प्रमुख है. इसी पुस्तक के अनुसार  देश भर के 25 हज़ार स्थानों पर अारएसएस की नियमित शाखाएं लगती हैं।  इन शाखाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका ' राष्ट्र  हिंदूकरण अॉर  हिंदुओं के सैन्यकरण की कार्यनीति को अागे बढ़ाना है।  जैसा कि पुस्तक  शीर्षक से ही स्पष्ट है अारएसएस के जितने भी संगठन , समितियां अॉर मंच हो सबका  लक्ष्य है अॉर वह वही ' हिन्दू हिटलरी राष्ट्र ' है।

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