असत्य के प्रयोगकर्ता का समकालीन सर्वनाम है नरेंद्र दामोदरदास मोदी : 01
असत्य के प्रयोगकर्ता का समकालीन सर्वनाम है - नरेंद्र दामोदरदास मोदी। पहला प्रयोग तो कब किया पैदा होने के बाद पता नहीं। हाँ , ये पता हैं उन्होंने इसका सबसे बड़ा प्रयोग राष्टीय स्वयंसेवक संघ के साथ किया , अपने को अविवाहित बता उसका " सर्वश्रेष्ठ " प्रचारक बनने। फिर लाल कृष्ण आडवाणी जी की सोमनाथ से अयोध्या की " रथयात्रा के सारथी " बन उनका असत्य का प्रयोग बढ़ता ही गया। गुजरात के मुख्य्मंत्री बन जाने के बाद असत्य के प्रयोग की पींगे और बढ़ गईं। उन्होंने गोधरा काण्ड के तुरंत बाद राज्य में नया चुनाव कराने की अपनी ख्वाहिश में रोड़ा बने तब के मुख्य निर्वाचन आयुक्त जेम्स माइकल लिंगदोह को सार्वजनिक सभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया की तरह क्रिश्चियन बोल हिंदुत्व की हुंकार भरी। लिंगदोह साहब ने अगले दिन सिर्फ इतना कहा कि जो नहीं जानते कि वह नास्तिक हैं उनसे उनको कुछ नहीं कहना फिर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सख्त हिदायत के बाद मोदी जी ने असत्य के अपने उस प्रयोग के लिए सार्वजनिक माफी मांग ली। मगर गोधरा काण्ड बाद गुजरात में नया चुनाव तत्काल कराने की अपनी ख्वाहिश पर लिंगदोह साहब की रोकथाम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में फ़रियाद कर डाली जिसने उनकी एक ना सुनी और लिंगदोह साहब की इस बात को सही टहराया कि गोधरा काण्ड के तुरंत बाद राज्य में नया चुनाव, स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नहीं कराया जा सकता। मोदी जी के असत्य के प्रयोग की सुप्रीम कोर्ट में वह पहली हार थी। पर वह कहाँ मानने वाले असत्य के अपने प्रयोग के लिए।
जब
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि चुनाव के हर प्रत्याशी को अपनी ही नहीं
अपनी पत्नी तक की आय -सम्पति के विवरण के किसी भी बिंदू को निरुत्तर नहीं
रखना होगा तो मोदी जी ने पहली बार 2014 के चुनाव में अपने नामांकन -पत्र के
साथ दाखिल शपथ -पत्र में अपनी पत्नी के बतौर यशोदा बेन का नाम भरा।
दुनिया चौंक गयी पर मोदी जी तो , मोदी जी कत्तई नहीं सम्भले। असत्य के
प्रयोग करते गए। असत्य के प्रयोगकर्ता का समकालीन सर्वनाम है - नरेंद्र दामोदरदास मोदी। पहला प्रयोग तो कब किया पैदा होने के बाद पता नहीं। हाँ , ये पता हैं उन्होंने इसका सबसे बड़ा प्रयोग राष्टीय स्वयंसेवक संघ के साथ किया , अपने को अविवाहित बता उसका " सर्वश्रेष्ठ " प्रचारक बनने। फिर लाल कृष्ण आडवाणी जी की सोमनाथ से अयोध्या की " रथयात्रा के सारथी " बन उनका असत्य का प्रयोग बढ़ता ही गया। गुजरात के मुख्य्मंत्री बन जाने के बाद असत्य के प्रयोग की पींगे और बढ़ गईं। उन्होंने गोधरा काण्ड के तुरंत बाद राज्य में नया चुनाव कराने की अपनी ख्वाहिश में रोड़ा बने तब के मुख्य निर्वाचन आयुक्त जेम्स माइकल लिंगदोह को सार्वजनिक सभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया की तरह क्रिश्चियन बोल हिंदुत्व की हुंकार भरी। लिंगदोह साहब ने अगले दिन सिर्फ इतना कहा कि जो नहीं जानते कि वह नास्तिक हैं उनसे उनको कुछ नहीं कहना फिर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सख्त हिदायत के बाद मोदी जी ने असत्य के अपने उस प्रयोग के लिए सार्वजनिक माफी मांग ली। मगर गोधरा काण्ड बाद गुजरात में नया चुनाव तत्काल कराने की अपनी ख्वाहिश पर लिंगदोह साहब की रोकथाम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में फ़रियाद कर डाली जिसने उनकी एक ना सुनी और लिंगदोह साहब की इस बात को सही टहराया कि गोधरा काण्ड के तुरंत बाद राज्य में नया चुनाव, स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नहीं कराया जा सकता। मोदी जी के असत्य के प्रयोग की सुप्रीम कोर्ट में वह पहली हार थी। पर वह कहाँ मानने वाले असत्य के अपने प्रयोग के लिए।
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