चुनाव के किस्से
लोकसभा चुनाव 1999 : बासी कढ़ी में उबाल
बारहवीं लोकसभा में 21 मार्च 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट के अंतर से विश्वास -मत प्रस्ताव हार गई. इसके कुछ ही दिनों बाद राष्ट्रपति ने यह देख कर कि कोई वैकल्पिक सरकार नहीं बन सकती है निर्वाचन अायोग को 13 वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कराने के अादेश दे दिए. चुनाव की तैयारियां तभी से शुरू हो गई थी.
प्रारंभ में ऐसा लगा कि चुनाव जल्दी हो जाएंगे. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की भी मांग थी कि चुनाव मई -जून तक संपन्न करा लिए जाएं। समाचार माध्यमों और विशेषकर संवाद समितियों ने चुनावी खबरों के लिए अपनी कमर कसनी शुरू कर दी. अनेक भाषाई समाचारपत्रों में तो विभिन्न लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के भूगोल और चुनावी इतिहास की खबरें छपनी भी लगी। संवाददाताओं के बीच यह अाम धारणा थी कि ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी. क्योंकि 1998 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान संकलित समाचार , सर्वेक्षण और अांकड़े बहुत उपयोगी होंगे। बस उनमें थोड़ी और बातें , खबरें जोड़ कर काम चल जाएगा।
मै तब लखनऊ में पदस्थापित था और निजी कारणों से कुछ दिनों के लिए हैदराबाद गया था. मेरी न्यूज़ एजेसी के वहां के कार्यालय में एक दिन एक प्रमुख भाषाई समाचारपत्र के प्रतिनिधि कम्प्यूटर में सुरक्षित पिछले चुनावी समाचार और अांकड़ों को मांगने पहुंचे. संयोग से उन्हें वह सब कुछ कम्प्यूटर फ्लापियों में मिल गया जो वह मांगने अाये थे. लगा कि सूचना प्रोधोगिकी ने हमारा काम कितना अासान बना दिया है.
मेरे लखनऊ लौटते -लौटते निर्वाचन अायोग ने घोषणा कर दी थी कि चुनाव सितंबर- अक्तूबर में होंगे. सबने सोचा काफी वक़्त मिल गया है. चुनावी खबरों की और तैयारी में मदद मिलेगी। हमने उत्तर प्रदेश के सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में अंकड़ें और अन्य सूचनाएं एकत्रित कर उन्हें भावी उपयोग के लिए कम्प्यूटर में भरना शुरू कर दिया।
मै मूलतः हिंदी में कार्य करता रहा हूँ। लेकिन इस बार के चुनाव ने मुझे ' द्विभाषी ' पत्रकार बना दिया। कारण , कम्प्यूटर पर हिंदी के बजाय अंग्रेजी में काम करना अासान लगा। तब यूनीकोड नहीं था। टाइपिंग से लेकर सॉफ्टवेयर तक सभी चीजें अंग्रेजी के ज्यादा अनुकूल थी. इंटरनेट पर निर्वाचन अायोग के वेबसाइट से लेकर इंडिया टुडे के चुनावी वेबसाइट ' इंडिया डिसाइड्स ' तक पर उपलब्ध जानकारी अंग्रेजी में ही थी. इन सबको डाउनलोड कर मै पहले कटिंग -पेस्टिंग कर और उनमें अपनी खबर जोड़ कर समाचार तैयार कर लेता था और फिर खुद ही उनका हिंदी रूपांतरण भी कर लेता था।
इस बीच विश्व कप क्रिकेट और फिर कारगिल प्रकरण के कारण चुनाव की खबरें समाचारपत्रों में दब गयीं। हमारी सारी तैयारियां धरीं रह गईं। लेकिन चुनाव कार्यक्रमों की निर्वाचन अायोग द्वारा घोषणा किए जाने के साथ ही चुनाव की खबरों की रेल फिर पटरी पर अा गई। कम्प्यूटर में कुछ माह पहले भरे हमारे चुनावी समाचार काम अाने लगे।
एक रोचक किस्सा यूं रहा। 1996 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट से प्रत्याशी एवं भाजपा नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में मैने एक प्रोफाइल तैयार किया था. वह 1998 में भी काम अाया था. 1999 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद जब वह पहली बार लखनऊ अाये तो उसी पुराने प्रोफाइल में तनिक परिवर्तन कर और ऊर्दू की एक नज़्म का एक अंश जोड़ कर मेरा काम चल गया। अलबत्ता इस बार मैन उस प्रोफाइल का अंग्रेजी तर्जुमा भी कर दिया।
बहरहाल , वो अंश जिसे इस्तेमाल कर भाजपा वालों ने पोस्टर भी निकाले ये था , " अास्मा में क्या ताब है / कि छुड़ाए लखनऊ हमसे / लखनऊ हम पर फिदा / हम फिदा-ऐ -लखनऊ '.
प्रोफाइल के अंग्रेजी स्वरूप में ये अंश रोमन में लिख उसका भावानुवाद कर दिया था. प्रोफाइल के दिल्ली में अनुदित ऊर्दू स्वरूप में इस अंश को शुद्ध रूप से लिख चार चांद लगा दिए गए.
अगली सुबह संपादक जी ने दिल्ली से मुझे फोन कर कहा , " वाह क्या बात है.पीएम की तुम्हारी बनाई प्रोफाइल देश भर के लगभग सभी अखबारों में झमाझम छपी है.वेल डन. वी अार प्राउड अॉफ यू ". उन्हें क्या पता था कि मै बासी कढ़ी में उबाल ले अाया था !
लोकसभा चुनाव 1999 : बासी कढ़ी में उबाल
बारहवीं लोकसभा में 21 मार्च 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट के अंतर से विश्वास -मत प्रस्ताव हार गई. इसके कुछ ही दिनों बाद राष्ट्रपति ने यह देख कर कि कोई वैकल्पिक सरकार नहीं बन सकती है निर्वाचन अायोग को 13 वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव कराने के अादेश दे दिए. चुनाव की तैयारियां तभी से शुरू हो गई थी.
प्रारंभ में ऐसा लगा कि चुनाव जल्दी हो जाएंगे. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की भी मांग थी कि चुनाव मई -जून तक संपन्न करा लिए जाएं। समाचार माध्यमों और विशेषकर संवाद समितियों ने चुनावी खबरों के लिए अपनी कमर कसनी शुरू कर दी. अनेक भाषाई समाचारपत्रों में तो विभिन्न लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के भूगोल और चुनावी इतिहास की खबरें छपनी भी लगी। संवाददाताओं के बीच यह अाम धारणा थी कि ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी. क्योंकि 1998 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान संकलित समाचार , सर्वेक्षण और अांकड़े बहुत उपयोगी होंगे। बस उनमें थोड़ी और बातें , खबरें जोड़ कर काम चल जाएगा।
मै तब लखनऊ में पदस्थापित था और निजी कारणों से कुछ दिनों के लिए हैदराबाद गया था. मेरी न्यूज़ एजेसी के वहां के कार्यालय में एक दिन एक प्रमुख भाषाई समाचारपत्र के प्रतिनिधि कम्प्यूटर में सुरक्षित पिछले चुनावी समाचार और अांकड़ों को मांगने पहुंचे. संयोग से उन्हें वह सब कुछ कम्प्यूटर फ्लापियों में मिल गया जो वह मांगने अाये थे. लगा कि सूचना प्रोधोगिकी ने हमारा काम कितना अासान बना दिया है.
मेरे लखनऊ लौटते -लौटते निर्वाचन अायोग ने घोषणा कर दी थी कि चुनाव सितंबर- अक्तूबर में होंगे. सबने सोचा काफी वक़्त मिल गया है. चुनावी खबरों की और तैयारी में मदद मिलेगी। हमने उत्तर प्रदेश के सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में अंकड़ें और अन्य सूचनाएं एकत्रित कर उन्हें भावी उपयोग के लिए कम्प्यूटर में भरना शुरू कर दिया।
मै मूलतः हिंदी में कार्य करता रहा हूँ। लेकिन इस बार के चुनाव ने मुझे ' द्विभाषी ' पत्रकार बना दिया। कारण , कम्प्यूटर पर हिंदी के बजाय अंग्रेजी में काम करना अासान लगा। तब यूनीकोड नहीं था। टाइपिंग से लेकर सॉफ्टवेयर तक सभी चीजें अंग्रेजी के ज्यादा अनुकूल थी. इंटरनेट पर निर्वाचन अायोग के वेबसाइट से लेकर इंडिया टुडे के चुनावी वेबसाइट ' इंडिया डिसाइड्स ' तक पर उपलब्ध जानकारी अंग्रेजी में ही थी. इन सबको डाउनलोड कर मै पहले कटिंग -पेस्टिंग कर और उनमें अपनी खबर जोड़ कर समाचार तैयार कर लेता था और फिर खुद ही उनका हिंदी रूपांतरण भी कर लेता था।
इस बीच विश्व कप क्रिकेट और फिर कारगिल प्रकरण के कारण चुनाव की खबरें समाचारपत्रों में दब गयीं। हमारी सारी तैयारियां धरीं रह गईं। लेकिन चुनाव कार्यक्रमों की निर्वाचन अायोग द्वारा घोषणा किए जाने के साथ ही चुनाव की खबरों की रेल फिर पटरी पर अा गई। कम्प्यूटर में कुछ माह पहले भरे हमारे चुनावी समाचार काम अाने लगे।
एक रोचक किस्सा यूं रहा। 1996 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट से प्रत्याशी एवं भाजपा नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में मैने एक प्रोफाइल तैयार किया था. वह 1998 में भी काम अाया था. 1999 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद जब वह पहली बार लखनऊ अाये तो उसी पुराने प्रोफाइल में तनिक परिवर्तन कर और ऊर्दू की एक नज़्म का एक अंश जोड़ कर मेरा काम चल गया। अलबत्ता इस बार मैन उस प्रोफाइल का अंग्रेजी तर्जुमा भी कर दिया।
बहरहाल , वो अंश जिसे इस्तेमाल कर भाजपा वालों ने पोस्टर भी निकाले ये था , " अास्मा में क्या ताब है / कि छुड़ाए लखनऊ हमसे / लखनऊ हम पर फिदा / हम फिदा-ऐ -लखनऊ '.
प्रोफाइल के अंग्रेजी स्वरूप में ये अंश रोमन में लिख उसका भावानुवाद कर दिया था. प्रोफाइल के दिल्ली में अनुदित ऊर्दू स्वरूप में इस अंश को शुद्ध रूप से लिख चार चांद लगा दिए गए.
अगली सुबह संपादक जी ने दिल्ली से मुझे फोन कर कहा , " वाह क्या बात है.पीएम की तुम्हारी बनाई प्रोफाइल देश भर के लगभग सभी अखबारों में झमाझम छपी है.वेल डन. वी अार प्राउड अॉफ यू ". उन्हें क्या पता था कि मै बासी कढ़ी में उबाल ले अाया था !
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