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Sunday, August 30, 2015


हाशिया का अनुवाद :


घाेंघा ( गुंटर ग्रास )




सात वर्षों से
घाेंघा की बाट जाेह रहा हूँ मैं
और अब तक भूल चुका हूँ
उस जल जीव काे
कैसा हाेता है घाेंघा
देखने में
जब वह सामने आया
नग्न संवेदनशील
मैंने यही नाम ढूँढने की काेशिश की
मैंने कहा अनुभव, धैर्य, भाग्य
घाेंघा बगल से निकल गया
बिल्कुल चुपचाप

अनुवाद : चंद्रप्रकाश और इम्तियाज़ बख्शी " मोंटी " ,  जेएनयू 1986

*  जेएनयू में ही पढ़ने बाद अमेरिका जा बसीं तस्नीम रोज़नर ने मोंटी की असामयिक मौत के बाद श्रीनगर पहुँच अपने छोटे भाई से जुड़ी -बची तमाम चीजों को टटोलने की प्यारी जिद के साथ जेएनयू वालों से भी संपर्क किया।  गुजिश्ता ज़माने की मोंटी से जुड़ी बस यही चीज मेरे पास है।  शुक्रगुजार हैं हम साथी विमल कुमार  के जिन्होंने मूल जर्मन से किये इस अनुवाद को निखारा और श्रद्धेय  डीआर चौधरी का जिन्होंने रोहतक (हरियाणा ) से प्रकााशित अपने अखबार ' पींग ' में इसे और एक और कविता को भी जगह दी.

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