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Saturday, August 22, 2015

एक था मफलर -1

हाशिया के किस्से  :
 एक था मफलर - 1



हुआ यूं कि किसी ख़ास दोस्त ने एक मफलर खुद बुन मुझे सप्रेम पहना दिया. वो मफलर यूं  गले पड़ी कि पूछो मत.गज़ब का विश्वाश था उस मफलर को खुद पर और गले मिलने बाद शायद मुझ पर भी. इस मफलर के कई किस्से हैं. एक किस्सा सरे आम सुना दूँ तो गैर-मुनासिब नहीं.

कभी किसी रोज मेरे पास एक ढेला भी नहीं था. सुबह से भूखे मुझे किसी और दोस्त ने जेएनयू ओल्ड कैम्पस लाइब्रेरी की कैंटीन में लंच वखत फकत दो रूपये खर्च कर राज़्मा - चावल खिला देने की कृपा कर दी. शायद गले पड़ी उस मफलर को देख. 

वहाँ से दोपहर बाद जेएनयू की बस से मुफ़त में मंडी हाउस स्थित सप्रू हाउस लाइब्रेरी पहुँच गया. लाइब्रेरी में पढ़ना तो था नही. कुछ पैसों की जुगाड़ में मंडी हाउस पहुंचा था. सो वहाँ से जुगाड की फिक्र में बगलगीर - जेएनयू के ही गोमती गेस्ट हाउस चला गया. मेरे काम आने वाला कोई भी वहां नहीं मिला .वहाँ कैंटीन चलाने वाले मित्रवत मोहन भाई भी नहीं मिले. जेएनयू बस की मुफत  सेवा से वापस लौटने का वक़्त गुज़ारना मुश्किल लग रहा था. शाम ढलने में बहुत वक़्त बचा था. क्या करूँ , क्या ना करूँ - इस उधेड़बुन में चाय की तलब लगी.

ये सोच ' त्रिवेणी' पहुँच गया कि शायद वहाँ जान-पहचान का कोई मिल जाए.जेएनयू के ही दो मित्र वहां बैठे दिखे. मुझे देखते ही उनकी बांछे खिल गई. उन्हें देख मेरी भी .मैंने उनके पास पहुँच कहा , " चाय पिलाओ" . उनमें से एक मित्र ने , जो अभी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन चुके हैं , कहा , " अमां यार , सिगरेट तक का जुगाड़ नहीं ". दूसरे मित्र ने , जो बाद में कंही और प्रोफ़ेसर बन अब दिवंगत हो चुके है , बड़े प्यार से कहा , " तुम्ही कुछ करो ना अब ". मैं उनके साथ बैठ सोचने लगा.  वो दोनों मुझे टुकर- टुकर  देखने लगे .

थोड़ी देर में एक व्यक्ति हमारे पास पहुंचा. उसने मुझसे पूछा , " व्हाट'स योर सिटींग फी " .मैं समझा नहीं , सो कुछ बोला नहीं. लेकिन मेरे दोनों मित्र समझ गए कि कोई जुगाड़ होने वाला है. उनमें से एक ने , जिन्होंने प्रोफ़ेसर बनने से पहले दिल्ली में द स्टेट्समैन में नौकरी की थी , बहुत नम्र स्वर में और उच्चारण-दोष-मुक्त अंग्रेजी में उस व्यक्ति से जो कहा उसका लब्बो -लुबाब था कि जितना भी देंगे चलेगा , ये आपका काम कर देगा.

 मैंने उस मित्र को हिंदी में टोका , " पर करना क्या है , ये तो पता चले " . उस व्यक्ति ने अंग्रजी में ही मुझसे कहा , " इट्स अर्जेंट. वी नीड यू फॉर मॉडलिंग . इट वोंट टेक मोर दैन 30 मिनट्स . वी हैव स्टूडियो इन बेसमेंट.  शैल पे योर फी. "

मैंने मन-ही-मन कुछ गणित जोड़ उनको अंग्रेजी में जो कह डाला उसका लब्बोलुबाब था - 500 रूपये नगद लूंगा , 100 रूपये अड्वान्स. यहीं चाय,  पकोड़े के लिए. उस व्यक्ति ने मुझे 100 -100 के पांच नोट थमा दिए (तब 500 रूपये के नोट नहीं होते थे ) और कहा , " शैल पे आल ऑफ़ योर कैंटीन बिल " . उन्होंने  वेटर को बुला कर हिन्दी में कहा , " ये लोग आज यहाँ जो भी खाएं -पीयें सबका पेमेंट मुझसे ले जाना. फिर उन्होंने मुझसे कहा , " शैल बी बैक इन 10 मिनट्स टू टेक यू अलोंग फॉर मॉडलिंग".

उस व्यक्ति के जाते ही दोनों मित्र ख़ुशी से उछलने लगे . एक ने कहा , " पैसे ज्यादा मांग लिए. मॉडलिंग कभी की है क्या? ठीक से करना वर्ना ये पैसे भी वापस ले लेगा. दूसरे ने कहा , " पैसे तो और भी मिल सकते हैं. ऱम , व्हिस्की जो भी पीनी है बोलो और पैसे दो. जब तक तुम मॉडलिंग करोगे हम दोनों यहीं कंही से खरीद लाएंगे , गोमती में बैठ लेंगे , वहीँ कैन्टीन में खाना भी खा लेंगे और फिर रात में जेएनयू निकल लेंगे" . मैंने उन्हें 200 रूपये देकर कहा , " मेरे लिए एक क्वार्टर या हाल्फ डबल माल्ट व्हिस्की , अपने लिए चाहो तो ओल्ड मोंक की पूरी बॉटल ले लेना , दो पैकेट विल्स नेवी कट सिगरेट भी " .


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