Search This Blog

Thursday, August 27, 2015

अजनबी- अपने-अजनबी


बाअदब

अजनबी- अपने-अजनबी






कभी अपने लगते अजनबी कभी अजनबी अपने-से
कंही ऐसा तो नही  हम हो गए गए अजनबी अपने से

मुंतज़िर था साथ जिनका क़यामत बाद भी कसम-से
फिर क्यों लगे हैं वो अजनबी क़यामत के पहले से

वज़न लम्हों का तौलें हुज़ूर किस बनिए की तराज़ू पर
कोई लम्हा भारी पड़ा क्या जिंदगानी के सारे लम्हों पर

 अपने बने अज़नबी और अज़नबी बने अपने में
कितना फासला होता है कभी पूँछ लूंगा दोनों  से

क्यों कोई अज़नबी अपना हो जाता है
अपना बन फिर अजनबी हो जाता है


अजनबियों के भी तो अपने -अज़नबी होते होंगे
कोई अज़नबी बताये कितने अपने-अज़नबी  देखे
(काठमांडू , सोमवार 30 अप्रैल 2015)

No comments: