Search This Blog

Sunday, August 30, 2015

कमबख्त वक़्त: 003 

 

कमबख्त तुलसी

मुंबई 05 फरवरी 2015 : आज भी सूरज की पहली किरणें बिस्तर छूते ही जग गया. खुद पानी पीने से पहले घर में नए लगे दर्जनों पौधों को अपने बच्चों की तरह पानी देने का दायित्वबोध सर पर सवार था.अपने बच्चे तो बच्चे नहीं रहे और संग भी नहीं रहते अब. आज ही बेटा का जन्मदिन भी था. मन किया कि उसे फ़ोन करूँ. किन्ही कारणों से फ़ोन पर बधाई देने से रूक गया.एसएमस भेज दिया ,ये सोच कि जब फुरसत होगी तो देख लेगा.

बीते कुछ दिनों से लगता है कि पौधे बच्चे तो नहीं , बच्चों से कम भी नहीं. इस एहसास ने नींद से जगते ही चीता -जैसी नई स्फूर्ती भर दी है . नए ' बच्चों ' के लालन -पालन के लिए लगे रहने में अजीब खुशी मिलती है. किसान परिवार का हूँ. संयोग से विज्ञान स्नातक भी , वनास्पति शास्त्र में ' प्रतिष्टा ' और रसायन शास्त्र में विशिष्टता के साथ. संयोग- दुर्योग , जो भी हो ,आगे की पढ़ाई और अच्छी नौकरी के लिए दिल्ली जाकर जेएनयू में दाखिला लेने से पहले गाँव में साल भर खुद खेती भी की. लेकिन वनास्पति शास्त्र का अकादमिक ज्ञान , गाँव में ज्यादा काम नहीं आया. पौधों को  पानी देते-देते सोचने लगा कि गाँव की जमीनी हकीकत, किताबी ज्ञान से बिल्कुल भिन्न थी. यह भी कि गाँव में मीलों पसरे खेतों में हासिल व्यावहारिक ज्ञान , मुम्बई के संकुचित घर में लगे पौधों के सन्दर्भ में पूरी तरह से मेल नही खाता है. पौधों को जमीन ही नहीं नसीब होती यहां.
                            
पौधों को समुचित मिट्टी, पानी और धूप भी मयस्सर नही यहां.  नगरों का पर्यावरणीय , रासायनिक प्रदूषण , पेड़ -पौधों को लहलहाने देने में अलग समस्या खडी करता है. पढ़ रखा था कि पेड़ -पौधों की जान , जड़ से अधिक उनकी हरी पत्तियों में होती है. पानी , जड़ पीतीं हैं. धूप खाने का काम जड़ का नहीं ,पत्तियों का है. जड़ को समुचित पानी नही मिले तो पौधा सूख जाता है, मर जाता है. पानी ज्यादा मिले तो भी पौधा सड़ कर मर ही जाता है.पेड़ -पौधे भी सजीव ही तो हैं. इंसान की तरह उन्हें पानी ही नहीं पीनी , कुछ खाना भी है. पत्तियों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक धूप खाने देने के पहले उनपर जमा मिट्टी , धूलकण आदि को पानी के हलके स्प्रे से साफ कर देने से पौधे संपुष्ट होते है.

कुछ दिनों से देख रहा था कि गेरू रंग के  गमले में लगाया तुलसी का नया पौधा मेरी तमाम कोशिशों के बावजूद मुरझा रहा है. उसकी छोटी -छोटी पत्तियों एक-एक कर सूख रही थी. मेरी एक महिला मित्र का कहना था हर घर में तुलसी नही टिकती. एक पुरुष मित्र ने पता नहीं किस आधार पर कह दिया कि जिस घर-आँगन में कोई महिला ना हो वहाँ कुछ भी कर लो तुलसी मुरझा ही जायेगी. बीते कुछ दिन कोर्ट कचहरी के चक्कर ज्यादा लगे , घर में भी नई रंगाई आदि के चलते काम बहुत बढ़ गए थे. ऐसे में तुलसी को मुरझा जाने से रोकने में विफल रहा. मैंने हाल में मित्रवत बने एक पेशेवर माली , मोहन दत्तात्रेय , को फोन पर अपनी बेहाल तुलसी के बारे में बताया था. उसने आज शाम हरी तुलसी का नया पौधा देने की बात कही थी. इसका स्मरण होते ही मैंने आज सुबह कमबख्त तुलसी के लगभग सूखे पौधे को गमले से उखाड़ कर डस्टबिन में फ़ेंक दिया. अच्छा नहीं लगा तुलसी को उखाड़ फेंक. बेटा का कोई जवाबी एसएमएस या फोन नही आया. मोहन माली भी नहीं आया. मन उदास हो गया. क्या करें.        

No comments: