प्रतिकविता :002
हथेली नहीं देखती
हथेली नहीं देखती
हम देखते हैं हथेली
उसकी लकीरें
उसकी उंगलियाँ
उँगलियों में अंगूठियां
हथेली नहीं देखती
हम देखते हैं
उस पर लगी मेंहदी
मिट्टी
पसीना
धब्बे
रक्त
हथेली नहीं देखती
हम देखते हैं
उसकी सुंदरता
हथेली नहीं देखती
हम देखते हैं
और व्याख्या करते -करवाते हैं
अपनी ही हथेली की
लकीरों की
उंगलियाँ की
उंगलियाँ पर जडी अंगूठियों की
लकीरों की
उंगलियाँ की
उंगलियाँ पर जडी अंगूठियों की
और
हम ही समझते
और समझाते भी हैं सबको
हम ही समझते
और समझाते भी हैं सबको
उसकी सुंदरता
हथेली नहीं देखती
हमारी परेशानी
हम ही देखते है
अपनी परेशानी
अपनी हथेली देख
देख देख कर
हथेली पर लगी
मिट्टी
पसीना
रक्त
हम नही जानते
दरअसल जानना ही नहीं चाहते
कि हथेली
क्या जानती है
क्या समझती है
क्या महसूस करती है
अपनी लकीरों से
अपनी उंगलियों से
हम नही जानते
दरअसल जानना ही नहीं चाहते
कि हथेली
क्या जानती है
क्या समझती है
क्या महसूस करती है
अपनी लकीरों से
अपनी उंगलियों से
अपनी उंगलियों पर जड़ी अंगूठियों से
अपने ऊपर लगी
अपने ऊपर लगी
मेंहदी से
मिट्टी से
पसीना से
रक्त से
हम समझना ही नही चाहते
अपनी ही हथेली की
वस्तुनिष्ठता
अपनी ही हथेली की
वस्तुनिष्ठता
हम इतरा जाते हैं
अपनी हथेली पर
हथेली की
उंगलियों पर
उँगलियों पर
चांदी , सोना , हीरा
या फिर
कीमती पत्थरों से बनी -जड़ी
अंगूठियों पर
अपनी ही हथेली के कीमती पत्थरों से बनी -जड़ी
अंगूठियों पर
अपने ही किये श्रृंगार पर
हमारी हथेली आह भी नही करती
उसके श्रृंगार के अतिरिक्त भार से
हम आह्लादित होते हैं
अपनी ही हथेली के
अज्ञान से
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